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‘धीरे-धीरे दिल में उसके बसता चला गया’ पढ़िए हिंदी ग़ज़ल

कवि रतन कुमार श्रीवास्तव ‘रतन’ एक ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने गज़ल को परम्परागत रोमानी भावुकता से आम आदमी को जोड़ने का कार्य किया……..

धीरे-धीरे दिल में उसके बसता चला गया।
रूह में उसके मैं तो उतरता चला गया।।

रवानी तो है उसमें समन्दर की मानिंद,
डूबकर उसमें मैं तो बहता चला गया।।

क्या देखा एक हसीं नज़र से उसने हमें,
आके उसके पहलू में उड़ता चला गया।।

क़ुबूल क्या किया उसने हमारी मोहब्बत,
ज़माने की नज़र में मैं चढ़ता चला गया।।

बनके जोगन डाली हमपे उसने ऐसी नज़र,
बनके जोगी मैं तो रमता चला गया।।

हाथों से पकड़ी उसने क्या उंगलियां हमारी,
साथ-साथ उसके मैं तो चलता चला गया।।

दिखाया ज़माने ने जब हमको अपना तेवर,
हौले से उसके कानों में कुछ कहता चला गया।।

-रतन कुमार श्रीवास्तव ‘रतन

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