सूर्योदय भारत समाचार सेवा, सीतापुर : सीमेंट और चीनी कारोबार में भारत के प्रमुख ग्रुप, डालमिया भारत ग्रुप ने अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के मौके पर 18000 महिलाओं के सफल सशक्तिकरण की घोषणा की है। इन महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की स्थापना के माध्यम से आवश्यक कौशल प्रशिक्षण और महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुँच प्रदान की जाती है, ताकि उन्हें सतत रूप से आजीविका के गहन स्त्रोत प्रदान किए जा सकें। डालमिया भारत ग्रुप एनआरएलएम, नाबार्ड आदि जैसे विभिन्न संगठनों के सहयोग से न सिर्फ कृषि, बल्कि गैर-कृषि क्षेत्रों में भी सूक्ष्म उद्यम विकास, हस्तशिल्प उत्पादन आदि विविध प्रशिक्षण पहलों का आयोजन करता है। उक्त तमाम गतिविधियों का आयोजन भारत के 12 राज्यों में स्थित उन समुदायों में किया जाता है, जो इस ग्रुप के संचालन क्षेत्रों के समीप बसे हैं। इन पहलों का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना, उनके आय स्रोतों में विविधता लाना और औपचारिक ऋण प्रणालियों तक उन्हें आसान पहुँच प्रदान करना है। उत्तर प्रदेश में इस ग्रुप के उल्लेखनीय कार्यक्रमों पर विचार किया जाए, तो इनमें में से एक महिला कारीगरों को कुशल बनाना और ‘मूंज’ शिल्प और समकालीन क्रोशेट जैसे पर्यावरण-अनुकूल हस्तशिल्प उत्पादों को पुनः जीवित करना है। इन उत्पादों को जी20 शिखर सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के लिए उपहार के रूप में महत्वपूर्ण स्थान मिला, जो कि हाल ही में संपन्न हुआ है। डालमिया भारत ने क्षेत्र की 800 महिलाओं को स्वतंत्र जीवन जीने में सक्षम बनाया है, जो 4000 रु. से लेकर 10000 रु. तक की मासिक आय अर्जित करके खुद को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बना रही हैं। इस प्रकार, यह पहल उनके व्यक्तिगत हित और उनके परिवारों का समर्थन करने की क्षमता में उल्लेखनीय सुधार का माध्यम बनी है।
अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के मौके पर कंपनी की पहल पर टिप्पणी करते हुए, अशोक कुमार गुप्ता, सीईओ, डालमिया भारत फाउंडेशन, ने कहा, “यदि एक विकासशील देश की बात की जाए, तो इसमें खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के अंतर्गत ग्रामीण महिलाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। लेकिन कहीं न कहीं वे गंभीर हाशिए का सामना करने को मजबूर होती हैं, जिसमें सीमित भूमि स्वामित्व, उच्च निरक्षरता दर और पुरुषों की तुलना में असमान धनार्जन शामिल हैं। अपने तमाम कार्यक्रमों के माध्यम से डालमिया भारत, हाशिए पर रहने वाली ग्रामीण महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियों को प्रबंधित करते हुए उनकी उन्नति के लिए समर्पित है। हमारी प्रतिबद्धता सतत और उज्जवल भारत के लिए आत्मनिर्भरता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले संयुक्त राष्ट्र के सतत लक्ष्यों के अनुरूप है, जहाँ समुदाय और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने में सशक्त महिलाओं का अहम् योगदान है।”
डालमिया भारत, सीतापुर की महिला कारीगरों के साथ मिलकर सक्रिय रूप से काम कर रहा है, जिसमें पारंपरिक मूंज शिल्प को पुनर्जीवित करना शामिल है। इसे ‘द सरायन कलेक्शन’ के रूप में भी जाना जाता है। इसके तहत महिला शिल्पकार ‘मूंज’ नामक स्थानीय जंगली घास से बेहद खूबसूरत सामग्री बनाती हैं, जिनका उपयोग दीवार पर सजावट के लिए किया जाता है। यह घास मानसून के दौरान नदी के किनारे उगती है। इस घास की कटाई करने के बाद इसे धूप में सुखाया जाता है, रंगा जाता है और एक खूबसूरत हस्तशिल्प में तब्दील कर दिया जाता है, जो न सिर्फ जीवंत और पर्यावरण-अनुकूल होता है, बल्कि लंबे समय तक ज्यों का त्यों बना रहता है। यह पहल सिर्फ पारंपरिक कौशल को ही संरक्षित नहीं करती है, बल्कि किसान उत्पादक संगठन से जुड़ी सहकारी समिति के माध्यम से 250 से अधिक महिला कारीगरों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाती है। एक अन्य पहल का नाम क्राफ्ट हब है। यह उत्तर प्रदेश के गौतम बौद्ध नगर में 300 से अधिक प्रवासी महिला कारीगरों को अपने घरों से समकालीन क्रोशेट उत्पाद बनाने में सक्षम बनाती है। वे 100% प्राकृतिक सामग्री और एज़ो-मुक्त रंगों का उपयोग करके ऐसी सामग्री निर्मित करते हैं, जो दुनिया भर में सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए उपयुक्त होती हैं। उन्हें गुणवत्तापूर्ण धागे प्राप्त होते हैं और समकालीन उत्पाद तैयार करने के लिए डिज़ाइनर्स के साथ सहयोग करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस प्रतिवर्ष 15 अक्टूबर को मनाया जाता है, जो कृषि, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास में ग्रामीण महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने पर आधारित है। यह उन्हें सशक्त बनाने, असमानताओं को दूर करने और लैंगिक समानता और सतत विकास के वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप ढालने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।