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गरिमामय साहित्यिक समारोह में यश मालवीय का ‘सरोज सम्मान – 2024’ से अभिनंदन, कहा– ग्वालियर ने सरोज जी के रूप में अपनी विरासत को जीवित रखा है

अनुपूरक न्यूज एजेंसी, ग्वालियर। एक भव्य और गरिमामय साहित्यिक समारोह में प्रसिद्ध नवगीतकार, कवि यश मालवीय (इलाहाबाद) को जनकवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान 2024 से अभिनंदित किया गया। पिछली 20 वर्षों से बिना किसी व्यवधान के हर वर्ष 26 जुलाई को देश के किसी वरिष्ठ कवि को सरोज सम्मान से सम्मानित किये जाने की श्रृंखला में हुए इस आयोजन में हमेशा की तरह अनेकानेक प्रतिष्ठित कवियों, साहित्यकारों एवं ग्वालियर के सुधी समाज की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। दर्जन भर से अधिक संग्रहों वाले कवि, रंगमंच की विधा से भी जुड़े रहे, यश मालवीय पिछले साढ़े तीन दशकों से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में स्तंभ लेखन कर रहे हैं। उन्हें आधा दर्जन से अधिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है। सरोज सम्मान से सम्मानित होने वाले वे 21 वे कवि हैं। इससे पहले इस सम्मान से हिंदी, उर्दू, बुन्देली, संथाली, असमिया, बांग्ला, अंग्रेजी, ओरांव भाषा के कवियों सीताकिशोर खरे (सेंवढ़ा), निर्मला पुतुल (झारखंड), निदा फाजली (ग्वालियर वाले जो मुम्बई के भी हुए), अदम गोंडवी (गोंडा), उदय प्रताप सिंह (मैनपुरी-दिल्ली), नरेश सक्सेना (लखनऊ), राजेश जोशी (भोपाल), डॉ सविता सिंह (दिल्ली), राम अधीर (भोपाल), प्रकाश दीक्षित (ग्वालियर), कात्यायनी (लखनऊ), महेश कटारे सुगम (बीना), मनमोहन और शुभा (रोहतक), मालिनी गौतम (गुजरात), विष्णु नागर (दिल्ली), जसिंता केरकेट्टा (रांची), देवेन्द्र आर्य (गोरखपुर) और कविता कर्मकार (असम) को सम्मानित किया जा चुका है ।सम्मान के बाद दिए अपने स्वीकारोक्ति संबोधन में यश मालवीय ने कहा कि यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। सरोज जी ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी कविता से हिंदी की दो पीढ़ियों को सलीका सिखाया। उनकी कविता की ताकत इतनी है कि 22 वर्ष से दैहिक रूप से न रहने के बावजूद वे पहले से ज्यादा शक्तिशाली रूप से हमारे बीच हैं भी और बहुत प्रासंगिक हैं। यश मालवीय ने सरोज जी के अनेक संस्मरण भी सुनाए। उन्होंने ग्वालियर को धन्यवाद दिया, जिसने अपनी विरासत को सहेज कर रखा है।समारोह का परिचय देते हुए जनकवि मुकुट बिहारी सरोज स्मृति न्यास की सचिव *मान्यता सरोज* ने कहा कि एक जमींदार परिवार में जन्मने के बावजूद सरोज जी की शुरुआती जीवन यात्रा दो अनाथ भाईयों की जीवन यात्रा की तरह संघर्षपूर्ण रही – इसी संघर्ष की भट्टी में तप कर उनका कवि निकला भी, निखरा भी। उन्होंने कहन की अपनी खुद की शैली खुद बनाई – प्रस्तुति का संवादी अंदाज खुद विकसित किया और मंच पर कौन है, इसकी परवाह किये बिना उसे निबाहा भी। उनकी कवितायें चुभोती हैं, तंद्रा तोडती हैं, पेड़ की मरी हुयी छाल की तरह चिपकी चेतनाओं को खुरचती हैं, उनकी कवितायें गुदगुदाती नहीं हैं, जगाती हैं, हौंसला देती हैं, विश्वास बढाती हैं। इसीलिए उनके जाने के 22 और उन कविताओं के लिखे जाने के 40-50 वर्ष बाद भी ताज़ी-ताज़ी लगती हैं।उनके जन्मदिन पर उन्हें याद करने के बहाने उनकी तरह, उन्ही भावों और तेवरों को जीवित रखने वाले गीतकारों, कवियों, शायरों, नवगीतकारों का सान्निध्य एक मंच पर कराना और एक कवि को सम्मानित कर उसी परम्परा को आगे बढाना है।आयोजन की शुरुआत सरोज जी के चित्र पर पुष्पांजलि से हुई । इसके बाद हुई काव्य संध्या में कविता पाठ करते हुए यश मालवीय ने अपनी कविता ‘पिता’ सरोज जी को समर्पित करते हुए पढ़ी :पितातुम छत से छाएज़मीन से बिछेखड़े दीवारों सेतुम घर के आँगनबादल से घिरेरहे बौछारों सेतुम अलबम से दबे पाँवजब बाहर आते होकमरे-कमरे अब भी अपनेगीत गुँजाते होतुम वसंत होकरप्राणों में बसेलड़े पतझारों सेतुम ही चित्रों सेफ़्रेमों में जड़ेलदे हो हारों सेतुम क़िताब से धरे मेज़ परपिछले सालों सेआँसू बनकर तुम्हीं ढुलकतेदोनों गालों सेतुम ही नयनों मेंसपनों से तिरेलिखे त्यौहारों सेतुम ही उड़ते होबच्चों के हाथ,बँधे गुब्बारों सेयदा कदा वह डाँट तुम्हारीमीठी मीठी सीघोर शीत में जग जाती हैयाद अँगीठी सीतुम्हीं हवाओं मेंखिड़की से हिलेबहे रसधारों सेतुम ही फूले होहोठों पर सजेखिले कचनारों से।फैजाबाद से आये शाहिद जमाल ने पढ़ा कि :कहीं का ग़ुस्सा कहीं की घुटन उतारते हैं/ ग़ुरूर ये है कि काग़ज़ पे फ़न उतारते हैं/ ख़ुदा करे कि सलामत रहें ये बूढ़े शजर/ कि हम परिंदे यहीं पर थकन उतारते हैं।दिल्ली से आये युवा कवि अशोक कुमार ने अपनी छोटी सी कविता में बड़ी बात कहते हुए सुनाया कि:मैं भीड़ में शामिलवो हत्यारा हूंजिसने पत्थर तो नही उठायाकिन्तु खामोश खड़ा रहा।मैं पंक्ति में खड़ावह नास्तिक हूंजो शामिल है आडम्बरों मेंरिवाजों के नाम पर।मैं फसाद के विरुद्धवह सेक्युलर हूंजो सौहार्द के पक्ष में खड़ा है-जातीय दम्भ के साथ।दरअसल-मैं भीतर से डरा हुआवह व्यक्ति हूंजो विद्रोह किये बगैरक्रांति चाहता है।युवा कवि सुश्री शेफाली शर्मा (छिन्दवाड़ा) ने अपनी कविता में कहा कि :सभ्यताओं का फलना-फूलना/ कभी देवताओं के आधीन नहीं रहा/ सभ्यताओं ने जन्म दिया देवताओं को/सभ्यताओं के साथ फलते-फूलते रहे देवता/ देवताओं के नाम पर की गई/ केवल एक हत्या/ देवताओं के लिए कितना बड़ा ख़तरा है।भोपाल से आये वरिष्ठ कवि महेंद्र सिंह ने सुनाई :ये जमीं मिल गयी आसमां मिल गया/ चंद लोगों को सारा जहाँ मिल गया।/ दिन में दूने हुए रात में सौ गुने/ इतना कैसे किधर कब कहां मिल गया।जनता की मांग पर कविता सुनाने खड़े हुए सरोज स्मृति न्यास के अध्यक्ष महेश कटारे सुगम ने पढा कि :क्या बचा है अब हमारे पास खोने के लिए/ कोई आंसू नहीं दामन भिगोने के लिए/ किस कदर टूटे हुए हैं आज तक रिश्ते यहां/ एक कंधा भी नहीं सर रखके रोने के लिए।भगवान् स्वरुप चैतन्य की अध्यक्षता में हुए इस समारोह का संचालन सुश्री शेफाली शर्मा ने किया । उनके पहले कविता संग्रह “सॉरी आर्यभट्ट सर” का विमोचन भी इस समारोह में किया गया।

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