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13 विधान परिषद सीटों के चुनाव में उप्र भाजपा ने दलित और महिला उम्मीदवारों से बनायी दूरी !

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ : सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे की हुंकार भरने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 13 सीटों के विधानपरिषद चुनाव में, उसकी 10 सीटों में से गठबंधन के तहत भाजपा के हिस्से केवल सात सीट आयी है, तीन सीट उसने सहयोगी दलों को दे दी हैं।

जाटों का एकमुश्त वोट लेने के लिये भाजपा का लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन किया है। जिसके एवज में जयंत चौधरी को दो लोकसभा सीट बागपत और बिजनौर, योगेश चौधरी के लिये एक विधानपरिषद सीट, उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में एक कैबिनेट मंत्री का पद दिया है। इससे पहले राज्यसभा चुनाव में मथुरा के चौधरी तेजवीर सिंह को राज्यसभा सांसद बनाया। अब भाजपा के पास प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह जाट, विधानपरिषद में एक नया जाट चेहरा मोहित बेनीवाल, चौधरी लक्ष्मीनारायण कैबिनेट मंत्री, के अलावा राष्ट्रीय लोकदल का पूरा जाट पट्टा सब भाजपा ने साध लिया।इसमें संवैधानिक पदों की गणना नहीं कि जा रही है। माना जा रहा है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने जाट वोट पर राजनैतिक गांठ बांध ली है। इनकी आबादी देखते हुये पार्टी इन्हें रिझाने के लिये अभी कुछ दे सकती है बस यह भाजपा को इसी तरह अपनी ताकत का एहसास कराते रहें।

ठाकुर साधने में भी पार्टी ने बहुत सजगता दिखाई है। महेंद्र सिंह को लगातार तीसरी बार विधानपरिषद भेज कर उनके कद का अपमान किया है।अपने भाषणों के बल पर राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले महेंद्र सिंहअसम व नार्थ ईस्ट में भाजपा की सत्ता के शिल्पकार माने जाते हैं। पांच राज्यों के चुनाव में उन्होंने पार्टी की शानदार जीत के लिये राजस्थान, मध्यप्रदेश में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया। संगठन का व्यक्ति होने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से योगी पार्ट-1 में निकटता टीम गुजरात और उनके कोतवाल को रास नहीं आयी, जिसके कारण उन्हें मंत्रिमंडल से हाथ धोना पड़ा। प्रधानमंत्री आवास हो या उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड को में हर घर जल योजना को साकार करना हो, महेंद्र सिंह का काम मील का पत्थर साबित हुआ है। राज्यसभा में उनकी दावेदारी पक्की मानी जा रही थी।

विजय बहादुर पाठक वह व्यक्ति हैं जिन्हें भाजपा कार्यालय का जर्रा-जर्रा पहचानता है। जानकर बताते हैं कि पाठक जिस महूर्त में पार्टी कार्यालय में पहली बार घुसे थे उस समय सर्वसिद्धि और अभिजित महूर्त और पुष्य नक्षत्र था।उन्होंने पार्टी को अपना सब कुछ दिया। बदले में पार्टी ने जो दिया उसका खुलासा वह नामांकन में करेंगे।बताते हैं कलराज मिश्र के यूपी में प्रदेश अध्यक्ष और लोकनिर्माण मंत्री रहते पाठक ने बहुत दोस्त बनाये। उनमें पार्टी के नेता, नौकरशाह और पत्रकार सब शामिल हैं।कठिन परिश्रमी, मृदुभाषी होने के कारण वह पत्थर को भो मोम बना देते हैं। ब्राह्मण समाज में भाजपा के नये नेताओं से ज्यादा पैठ रखने के कारण उनको विधानपरिषद भेज कर भाजपा ने कोई ऐहसान नहीं किया है। तमाम उतार चढ़ाव देखने वाले पाठक लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में यदि जगह नहीं बना पाये और जिस तरह पार्टी अति पिछड़ों और दलितों से विधानपरिषद चुनाव में दूरी बनायी है पाठक प्रदेश अध्यक्ष के प्रबलतम दावेदार बन कर उभरेंगे। उनके अब तक की कार्यशैली से जो लोग अवगत हैं वह उन्हें हर भूमिका में सक्षम और उपयुक्त मानते हैं।

राज्य मंत्री सोमेंद्र तोमर जिस गूजर समाज से आते हैं उसी गूजर समाज से पूर्व मंत्री अशोक कटारिया भी आते हैं। विद्यार्थी परिषद के नेता रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट के साथ गुजर साधना अनिवार्य होता है। जाट और गुजर मिल कर जिसके साथ खड़े होते हैं उसके सफलता की संभावना बढ़ जाती है। ये ऐसी जातियां हैं जो पार्टी से ज्यादा अपने समाज पर भरोसे के लिये जानी जाती हैं। जिनका आपसी संगठन बहुत मजबूत होता है। क्योंकि यह संगठित रहते हैं। जाट-गूजर हिन्दू-मुस्लिम -सिख तीनों में होते हैं। सिख समाज में तो जट सिख प्रायः अपरहैण्ड (दबदबा) रखता है। परिवहन मंत्री रहते कटारिया ने जो किया उसकी आज भी चर्चा होती है। एक राष्ट्रीय महामंत्री जो टीम गुजरात के बहुत करीबी बताये जाते हैं उनका इन पर भी आशीर्वाद है।

संतोष सिंह बचपन में ही छात्र राजनीति से जुड़ गये थे। इंटर कॉलेज में ही दबंग (न दबने वाला) छात्र होने के कारण लखनऊ आते ही विश्वविद्यालय की राजनीति में वह रम गये। इसी बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संपर्क में आ गये।विश्वविद्यालय में बढ़ती लोकप्रियता ने इन्हें मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सर्किल में पहुंचा दिया। महामंत्री, अध्यक्ष रहते हुए संतोष सिंह ने पूर्वांचल के अलावा शेष प्रदेश के छात्रों में मजबूत पैठ बनाने में सफल थे। भाजपा में जुड़ने के बाद पार्टी पर चाहे जितना उतार चढ़ाव आया वह विचलित नहीं हुये। हालांकि पार्टी ने बहुत झेला कर मुश्किल से उन्हें विधानपरिषद में भेजा है। क्यों कि उनके बाद के बहुत लोग पार्टी में बाहर से आये न जाने क्या-क्या प्राप्त कर लिये।इस बीच संतोष पर नाम का पूरा असर दिखा। एक समय राजनाथ सिंह के पुत्र नीरज सिंह के साथ दयाशंकर सिंह, संतोष सिंह और अश्वनी त्यागी प्रदेश मंत्री होते थे। पंकज सिंह को आउट ऑफ टर्न प्रोन्नति देकर महामंत्री बना दिया गया तब संतोष सिंह, दयाशंकर सिंह और अश्वनी त्यागी ने आवाज उठा कर नेतृत्व को यह एहसास करा दिया था कि हम ऐसे-वैसे नहीं हैं। विपक्ष में रह कर यदि हम यूपी और केंद्र सरकार की चूलें हिला सकते हैं तो पार्टी के भीतर हुये पक्षपात को भी हम स्वीकार नहीं करेंगे। इस विरोध की सबसे ज्यादा कीमत संतोष सिंह को चुकानी पड़ी।

भूमिहार समाज के धर्मेंद्र सिंह भाजपा के लिये अतिविशिष्ट क्षेत्र काशी से आते हैं।लिखने-पढ़ने वाले सिंह 2014 में कांग्रेस से भाजपा में उनका आगमन हुआ। वह क्षेत्रीय मीडिया टीम में सहप्रभारी हैं। कभी ऐसा नहीं रहा कि भाजपा में आने के बाद वह अपने स्वभाव में कोई परिवर्तन लाये हों। समय-समय पर आवाज बुलंद करना उनकी पहचान बन गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा सीट की दृष्टि से अपनी सीट सुरक्षित करने में कोई संकोच नहीं करते। जिसका प्रमाण एक ओर चंदौली लोकसभा सीट से ब्राह्मण महेंद्र पांडेय, जौनपुर कृपाशंकर सिंह ठाकुर, धर्मेंद्र सिंह को विधानपरिषद में भेजने के बाद यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद गाजीपुर लोकसभा सीट पर भूमिहार प्रत्याशी न लड़े। वाराणसी में कांग्रेस से आये दयाशंकर मिश्र “दयालु” विधानपरिषद में पहुंचने से पहले मंत्री बन गये थे। वाराणसी दक्षिणी से नीलकंठ तिवारी, वाराणसी उत्तरी से रवींद्र जायसवाल, वाराणसी कैंट से सौरभ श्रीवास्तव, सेवापुरी से भाजपा ने अपना दल (एस) के विधायक नील रतन परेल भाजपा का प्रत्याशी बना कर लड़ाया व रोहनियां से अपना दल (एस) के सुनील पटेल विधायक हैं। ये सब लोग मोदी की किलेबंदी करने के कारण महत्वपूर्ण हैं।इनके संदर्भ में कोई निर्णय दिल्ली की टीम गुजरात करती है।

भाजपा ने सातवां प्रत्याशी राम तीर्थ सिंघल को बनाया है। बनिया समाज से आने वाले सिंघल बीड़ी के थोक व्यापारी है। इससे पहले विद्यार्थी काल में पढ़ाई के दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े बाद में संघ के लिये समर्पित हो गये। लगातर संघ में सक्रिय होने के कारण वह झांसी के मेयर बने। इनसे पहले विधानपरिषद सदस्य के रूप में झांसी के तीन-तीन विधानपरिषद सदस्य पार्टी की सेवा और झांसी का विकास कर रहे हैं। इनके अलावा विधायक कोटे से मानवेंद्र सिंह, स्थानीय निकाय कोटे से रमा निरंजन, शिक्षक कोटे से डॉ. बाबूलाल तिवारी उच्च सदन में एमएलसी चुने जा चुके हैं। रामतीर्थ के जीतने के बाद वह चौथे एमएलसी के रूप में झांसी का प्रतिनिधित्व करेंगे। माना जाता है कि भाजपा में शीर्ष नेतृत्व में बनियों के दबदबे के कारण नीचे तक बनियों को साध कर रणनीति तय की जाती है। इस लिये राम तीर्थ जैसे सज्जनों को सेवा का अवसर दिया गया है। पार्टी के जिम्मेदार लोगों का कहना है कि स्थान सीमित है दावेदार ज्यादा हैं, जिस समाज के लोगों को अवसर नहीं मिला है उन्हें भी भविष्य में अवसर मिलेगा। भाजपा में भेद-भाव नहीं चलता, इसी प्रकार एक दिन सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास साकार होगा।

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