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भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की जन्मशती पर स्मरणीय संस्मरण…..

स्मरणीय संस्मरण : भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर (तत्कालीन मुख्यमंत्री ,बिहार) के करहल-मैनपुरी में प्रवास के दौरान, बाएं सुभाष चंद्र यादव ( एम एल सी) एवम् दाएं चौधरी नत्थू सिंह जी यादव ( तत्कालीन विधायक करहल, मैनपुरी)

सूर्योदय भारत समाचार सेवा : 24 जनवरी 1924 को बिहार में समस्तीपुर जिला के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में उनका जन्म हुआ था. वे बिहार के दूसरे डिप्टी सीएम रहे और फिर दो बार मुख्यमंत्री रहे. उनकी सादगी के कई किस्से हैं. एक किस्सा 1952 का है, जब वे पहली बार विधायक बने थे उन्हीं दिनों ऑस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में उनका चयन हुआ था लेकिन उनके पास पहनने को कोट नहीं था दोस्त से कोट मांगा तो वह भी फटा हुआ मिला, कर्पूरी जी वही कोट पहनकर चले गए, वहां यूगोस्लाविया के प्रमुख मार्शल टीटो ने जब फटा कोट देखा तो उन्हें नया कोट गिफ्ट किया।

कर्पूरीजी के पास गाड़ी नहीं थी 80 के दशक में कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे एक बार उन्हें लंच के लिए आवास जाना था उन्होंने अपने ही दल के विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप मांगी तो विधायक ने जवाब दिया “मेरी जीप में तेल नहीं है आप दो बार मुख्यमंत्री रहे कार क्यों नहीं खरीदते ?” आप सोचिए कि दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उनके पास अपनी गाड़ी नहीं थी वे रिक्शे से चलते थे उनके मुताबिक, कार खरीदने और पेट्रोल खर्च वहन करने लायक उनकी आय नहीं थी।

1974 में कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का मेडिकल की पढ़ाई के लिए चयन हुआ पर वे बीमार पड़ गए, दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हुए बेटे के हार्ट की सर्जरी होनी थी इंदिरा गांधी को मालूम हुआ तो एक राज्यसभा सांसद को भेजकर एम्स में भर्ती कराया खुद मिलने भी गईं और सरकारी खर्च पर इलाज के लिए अमेरिका भेजने की पेशकश की कर्पूरी ठाकुर को मालूम हुआ तो बोले, “मर जाएंगे, लेकिन बेटे का इलाज सरकारी खर्च पर नहीं कराएंगे.” बाद में जयप्रकाश नारायण ने कुछ व्यवस्था कर न्यूजीलैंड भेजकर उनके बेटे का इलाज कराया था।

1977 के एक किस्से के बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने लिखा था, पटना के कदम कुआं स्थित चरखा समिति भवन में जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन मनाया जा रहा था इसमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख समेत देशभर से नेता जुटे थे. मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुरी फटा कुर्ता, टूटी चप्पल के साथ पहुंचे एक नेता ने टिप्पणी की, ‘किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए ?’ सब हंसने लगे चंद्रशेखर अपनी सीट से उठे और अपने कुर्ते को सामने की ओर फैला कर कहने लगे, कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए. सैकड़ों रुपये जमा हुए जब कर्पूरी जी को थमाकर कहा कि इससे अपना कुर्ता-धोती ही खरीदिएगा तो कर्पूरी जी ने कहा, “इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा.”

पढ़ते हुए अजीब लग सकता है कि जो कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री रहे, लेकिन अपना एक ढंग का घर तक नहीं बनवा पाए एक बार प्रधानमंत्री रहते चौधरी चरण सिंह उनके घर गए तो दरवाजा इतना छोटा था कि उन्हें सिर में चोट लग गई. पश्चिमी यूपी वाली खांटी शैली में उन्होंने कहा, “कर्पूरी, इसको जरा ऊंचा करवाओ.” तब कर्पूरी जी ने कहा, “जब तक बिहार के गरीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा ?” उनके निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा जब उनके गांव गए, तो उनकी पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे. उन्हें आश्चर्य हुआ कि 1952 से लगातार विधायक रहे स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री बनें, लेकिन अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया।

{ साभार : डॉ अखिलेश यादव, करहल, मैंनपुरी }

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