
सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : दिव्यांग बच्चोंकी समावेशी शिक्षा के लिए विशेष अध्यापकों की सबसे बड़ी चुनौती उन्हें पर्याप्त तकनीकी प्रशिक्षण और पारिवारिक सहयोग की होती है. विशेष अध्यापकों का यह संघर्ष अदृश्य विकलांगता जैसे डिस्लेक्सिया, डिस्कैल्कुलिया, डिसग्राफिया आदि में अधिक होता है, क्यों कि शारीरिक रूप से यह दिव्यांगता दिखती नहीं तो अभिभावक एवं सामान्य अध्यापक जल्दी इस प्रकार के बच्चों को दिव्यांग मानते नहीं. अतः यह महत्वपूर्ण है कि अध्यापकों को गुणवत्तापूर्ण रूप से दिव्यांग बच्चों के स्क्रींग हेतु क्षमतावर्धन किया जाए. उक्त बातें चेंजइक फाउंडेशन के रास्ट्रीय सलाहकार अमरेश चंद्रा ने दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग उत्तर प्रदेश एवं नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड के संयुक्त राष्ट्रीय सेमिनार में कहीं.

राम मनोहर लोहिया चिकित्सा विश्वविद्यालय की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक श्रीमती सुधि कुलश्रेष्ट ने विशिष्ट अधिगम दिव्यंगता के दिव्यंगता प्रमाणपत्र और किंग जोर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी डॉ. रजत जैन ने श्रवण बाधित बच्चो की जाँच पर मार्गदर्शन किया. इस राष्ट्रीय सेमिनार मेंदिव्यांग जनों को रोजगार उपलब्ध कराने तथा उन्हें आर्थिक रूप से संपन्न बनाने हेतु डॉ रेड्डी फाउंडेशन के सुधांशु श्रीवास्तव एवं स्कोर फाउंडेशन के जॉर्ज अब्राहम ने अपने विचाररखें. सेमिनार में दिव्यांग जनअधिकार अधिनियम की बाधाएं और उनके उपयुक्त अनुपालन हेतु विषय पर भाषा विश्वविद्यालय के डॉ मुशीर अहमद एवं एमिटी विश्वविद्यालय के डॉ.साजिद काज़मी ने सभी का मार्गदर्शन किया .
सी.आई.आई सभागार गोमतीनगर में आयोजित इस राष्ट्रीय सेमिनार में दोस्ती स्टडी हॉल की तरन्नुम खान,क्राइस्ट चर्च कॉलेज के सलमान अली,डेफ वीमेन वेलफेयर संस्था की शबाना खान ने भी अपने विचार रखें सेमिनार का समापन नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंडकी वाइस प्रेसिडेंटन अमिता दुबे ने आभार ज्ञापन के द्वारा किया. इस सेमिनार में राष्ट्रिय स्तर के दिव्यंगता क्षेत्र के शिक्षाविद, निति निर्माता,स्वयं सेवी संस्थाओ के प्रतिनिध, अध्यापक अभिभावक एवं दिव्यांग जनों ने प्रतिभाग किया .