मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ / वाराणसी : लोकसभा चुनाव 2024 में 2014 और 2019 कि अपेक्षा भाजपा को करारी पराजय देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिला दिया। आज मंगलवार को दो दिवसीय दौरे पर आ रहे मोदी ने यूपी सरकार और संगठन दोनों के प्रमुखों को तलब किया है। सरकार और संगठन दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ना चाहते हैं। आम आदमी से लेकर भाजपा के खाटी दिग्गज सब जानते हैं कि पिछले दस वर्षों से लगातार नेतृत्व से मिल रही उपेक्षा से दुखी भाजपा कार्यकर्ताओं ने अहंकार तोड़ने के लिये अपने-अपने घरों में कदम रोक लिया, यह पहला कारण था। दूसरा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जनता ने अधिकतर लोगों को दो बार चुन लिया लेकिन इस बार मोदी की लोकप्रियता से ज्यादा तीसरी बार लड़ रहे प्रत्याशियों के विरूद्ध गुस्सा था। गुजरात नेतृत्व जनता है कि जब तक सरकार और संगठन में ठनी रहेगी, तब तक ही हमारी चौधराहट चलेगी। संयोग से लोकसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद यूपी सरकार और संगठन में तल्खी बढ़ गयी है। दोनों पक्ष एक-दूसरे को दोषी साबित करने में एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ऐसे में 6 करोड़ आबादी वाले राज्य से आने वाले नरेंद्र मोदी को एक बार फिर 25-26 करोड़ आबादी वाले राज्य पर दबदबा बनाने का मौका मिल गया है। मोदी किसी भी सूरत में यूपी में भाजपा की ताकत घटता नहीं देखना चाहते, इस लिये वह अब चुनिंदा लोगों से मिलने का दायरा बढ़ा कर अधिक से अधिक लोगों से संपर्क करने जा रहे हैं। यूपी के पूरे लोकसभा चुनाव का सबसे रहस्यमयी अध्याय यह था कि जिस सुनील बंसल को 2014 में उत्तर प्रदेश में तत्कालीन प्रदेश महामंत्री संगठन राकेश जैन के सहयोग में लगाया गया था वह आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाकर 2023 तक भाजपा के सबसे ताकतवर राष्ट्रीय महामंत्री बन कर उभरे। जबकि बड़ी संख्या में उनसे वरिष्ठ प्रदेश महामंत्री संगठन आज भी उनके बराबर नहीं पहुंच पाये। यही नहीं उनके दबदबे को लेकर अक्सर यह चर्चा होती है कि बंसल अपने प्रभाव के बल पर एक ऐसे अपने स्वजातीय कार्यकर्ता को जो कभी मंडल अध्यक्ष तक न रहे उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री बनवा दिया। ऐसे आल इन वन सुनील बंसल योगी सरकार के दौरान यूपी में समानांतर सरकार चलाने के नाते जाने जाते रहे। वह लोकसभा चुनाव 2024 में केवल एक सीट वाराणसी पर खुद को समेंट लिये उनके दुश्मनों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। उनके आलोचक भी मानते हैं कि पिछले दस वर्षों में यूपी भाजपा की एक-एक ईंट जिनके निर्देशक में रखी गयी यदि वह लोकसभा चुनाव के दौरान जिलों का दौरा करते तो उनके अनुयायी तथा बहुत सारे नाराज कार्यकर्ता समय रहते चुनाव में लग जाते। परिणामस्वरूप यूपी से भाजपा के विजयी सांसदों की संख्या बढ़ा सकती थी।
यूपी से विदा होने के बाद 2019 में लोकसभा की 16 हारी हुई सीटों को जिताने की जिम्मेदारी लेकर पुनः यूपी में घुसे और सुपर संगठन मंत्री बन कर पार्टी में अपनी ताकत का लोहा मनवाते फिरते रहे। यदि जान-बूझ कर पार्टी ने बंसल को केवल एक सीट पर केंद्रित कर दिया तो यह स्वाभाविक सवाल उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी को यह जानकारी को गयी थी कि इस बार वाराणसी में उनकी राह कठिन है। यदि नहीं तो किसकी साजिश के शिकार होकर सुनील बंसल एक सीट पर सिमट गये। यूपी से केंद्र में उनके जाने के बाद सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि उनके अनुयायी कभी वर्तमान महामंत्री संगठन का वह प्रभुत्व नहीं स्वीकार किये जिसके वह हकदार हैं। 80 लोकसभा वाले प्रदेश में नवनियुक्त महामंत्री संगठन धर्मपाल को बड़ी शातिराना तरीके से 64 सीटों तक समेट दिया गया।
संगठन से जुड़े सूत्रों की मानें तो उनका आरोप है कि जिस जाति से राज्य के मुखिया और उनके मलाईदार विभागों के मंत्री हैं उन जातियों का वोट क्यों नहीं मिला। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं ठाकुर, उनके जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह कुर्मी उसके बाद भी इन दो बड़ी जातियों का वोट भाजपा को क्यों नहीं मिला? कुर्मी वेल्ट में सपा के राम प्रसाद चौधरी (बस्ती), लालजी वर्मा (अम्बेडकरनगर), रामशिरोमणि वर्मा (श्रावस्ती) से चुनाव जीत गये। जबकि जालौन के रहने वाले पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, फतेहपुर के रहने वाले कैबिनेट मंत्री राकेश सचान अपने-अपने जिलों में भाजपा को नहीं जिता पाये, साथ ही जिन जिलों के प्रभारी थे वहां भी भाजपा बुरी तरह हारी है। बता दें कि स्वतंत्रदेव सिंह प्रयागराज लोकसभा और राकेश सचान बस्ती लोकसभा के प्रभारी मंत्री हैं। कुर्मी वोटों की ठेकेदार बन कर भाजपा से जुड़ी अनुप्रिया पटेल भी भाजपा से कुर्मी समाज को जोड़ने के बजाय खुद भाजपा पर बोझ बन गयीं। यदि मिर्जापुर में भाजपायी जी जान से लग न गये होते तो इनकी महत्वाकांक्षा भी इनकी बहिन पल्लवी पटेल की तरह चूर-चूर हो जाती। यूपी विधानसभा में सबसे ज्यादा कुर्मी विधायक बनवाने वाला कुर्मी मतदाता राजनैतिक रूप से बहुत ज्यादा बुद्धिमान है। माना जाता है कि कुर्मी वर्ग जाति के पेटेंट सौदागरों की परवाह किये बिना अपने समाज के प्रत्याशी को स्थानीय स्तर पर चुनवा में मजबूत करता है। यह जाति किसी अनुप्रिया और पल्लवी पटेल के फतवे का मोहताज नहीं है।
उपमुख्यमंत्री नम्बर एक केशव प्रसाद मौर्य का पूरा टाइम कार्यकर्ताओं को मनाने में चला गया। क्योंकि सात वर्षों की भाजपा सरकार में कार्यकर्ताओं के लिये उनका दरवाजा हरदम खुला मिला। इस लिये कार्यकर्ता मौर्य की बात सुन लिया। उनकी बात सुनने का मतलब यह नहीं था कि वह भाजपा के पक्ष में आ गये। उनका यही बहुत रहम रहा कि वे डिप्टी सीएम को सार्वजनिक खरी-खोटी सुनाने में रहम कर दिये। उपमुख्यमंत्री नम्बर दो ब्रजेश पाठक सरेराह तथास्तु का वरदान देते फिरते हैं लेकिन उनका वरदान शायद ही किसी याचक की कामना को साकार कर पाया हो। इनके उपमुख्यमंत्री बनने पर पार्टी के वरिष्ठ ब्राह्मण नेता अपनी खिन्नता समाप्त भी न कर पाये थे कि टीम दिल्ली में अपनी पैठ के बल पर पाठक ने फिर से अपने पार्टी के प्रतिद्वंदियों को ज्वाइनिंग कमेटी का चेयरमैन बन कर और शॉक्ड कर दिया।
पहले चरण से ही भाजपा को सबक सिखाने का ऐलान करने वाले ठाकुर मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में न योगी आदित्यनाथ रोक पाये, न उनके समाज के राजपूत मंत्रीगण, उल्टे आरोप लगता है कि प्रदेश भर में ठाकुर मतदाता प्रशासन के सहयोग से जिले-जिले ठाकुर सम्मेलन किया। इस अनुमति के ऊपर किसकी सरपरस्ती थी ?
दूसरे दलों से भाजपा में लाकर भर्ती करने के अभियान का अध्यक्ष उपमुख्यमंत्री नम्बर-2 ब्रजेश पाठक थे। उन्होंने बहुत बड़ी संख्या में भर्ती किया जिसको लेकर तरह-तरह उनके आरोप भी लगे लेकिन नई भर्ती के नेता दूसरे दलों से भाजपा में आकर भाजपा और अपनी दोनों की फजीहत करवा लिये।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप है कि वह किसी कार्यकर्ता का काम करना तो दूर उल्टे कार्यकर्ताओं को दलाल और बेईमानी साबित करने में ताकत लगाते हैं। यदि सरकार में कार्यकर्ताओं की भागीदारी मिली होती तो पार्टी की इतनी फजीहत नहीं होती। योगी ने अपनी हनक से कार्यकर्ताओं को सत्ता से दूर कर तो दिया लेकिन अफसरों की मनमानी पर नकेल कसने में फेल रहे। सात वर्षों में अधिकांश नौकरशाह अपनी सम्पत्ति का व्योरा न देकर मोदी – योगी की शख्त छवि को ठेंगा दिखा रहे हैं।
कार्यकर्ता न थाने-कचहरी जाने लायक रह गया और न ही किसी दबंग अधिकारी का विरोध कर पाया। भाजपा की नैया के यूपी में बुरी तरह डांवाडोल होने की सही खामी तलाशने आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोर कमेटी को तलब किया है। कोर कमेटी में यूपी भाजपा के प्रभारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, यूपी के महामंत्री संगठन के अलावा राज्य के तीनों सह प्रभारियों को रहने की बात कही गयी है। जानकारी के लिये बता दें कि पराजित केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों ने अपनी हार का ठीकरा दूसरों के सिर मढ़ना शुरू कर दिया है। यह सूची दिन व दिन लंबी होती चली जा रही है।