सूर्योदय भारत समाचार सेवा : भारतीय रेलवे 2030 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने के लिए ईंधन निर्भरता में कटौती करने और अर्थव्यवस्था में अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है। माननीय प्रधानमंत्री ने ग्रीन एनर्जी सेविंग के तहत राष्ट्रीय स्तर पर अपने विजन को प्रस्तुत किया था इसी कड़ी में शून्य कार्बन विकास रणनीति को अपनाने के लिए रेलवे ने कम कार्बन उत्सर्जन की दिशा में कदम बढाया है।
रेलवे बोर्ड ने अपने सभी आईसीएफ कोचों को 100 प्रतिशत एलएचबी कोचों में बदलने का निर्णय अप्रैल 2018 से लिया। रेलवे बोर्ड में ऊर्जा सरंक्षण की समीक्षा से पता चला है कि वर्ष 2021-22 के आधार पर वाशिंग/पिट लाइनों पर एलएचबी रेक के परीक्षण और रखरखाव पर डीजल की खपत लगभग 1.84 लाख लीटर प्रति दिन थी। यह लागत रुपये 668/- करोड़ से अधिक थी, जो प्रतिवर्ष 20 % बढ़ने का अनुमान था।
एलएचबी रेक के परीक्षण और रखरखाव के लिए 750 वोल्ट बिजली की आपूर्ति प्रदान करके वाशिंग/पिट लाइनों पर अधोसरंचना और क्षमता निर्माण कार्य महत्वपूर्ण था। वाशिंग/पिट लाइनों पर अधोसरंचना एवं क्षमता कार्य निर्माण में 210 करोड़ रुपये की पूंजी के निवेश से सामान्य कार्य व्यय में हर साल 500 करोड़ रुपये से अधिक की बचत होगी। यह लागत को कम करके और अनुकूलन के साथ दक्षता में सुधार करके गैर-टैरिफ उपायों के माध्यम से यात्री सेवाओं, विशेष रूप से मेल/एक्सप्रेस खंड की परिचालन व्यवहार्यता में सुधार करने के लिए रेलवे के प्रयासों का एक हिस्सा है।
इस उद्देश्य के साथ भारतीय रेल पर 411 वाशिंग/पिट लाइनों कार्यों के लिए कुल 210 करोड़ रूपये लागत पर मंजूरी दी गई। यह कार्य रेलवे बोर्ड की निगरानी में एक वर्ष से भी कम समय में पूरा किया गया। इस प्रकार पुरे भारतीय रेलवे पर जुलाई 2023 के अंत तक 316 वाशिंग/पिट लाइनों पर काम पूरा हो गया। बाकी को 2023 की दूसरी तिमाही तक पूरा करने का लक्ष्य है।
सेफ्टी, कॉस्ट इकॉनमी, कार्बन फुटप्रिंट और मानव संसाधन दक्षता के संदर्भ में स्पष्ट लाभ प्राप्त करने वाले कार्यों और क्षेत्रों की पहचान करने में रेलवे के निरंतर प्रयास इसी तरह आगे भी जारी रहेंगे।