सूर्योदय भारत समाचर सेवा : जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने रविवार को आश्चर्य जताया कि केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराने में देरी क्यों हो रही है. उन्होंने कहा कि यह समय जम्मू कश्मीर में एक निर्वाचित सरकार होने का है.
श्रीनगर से लोकसभा सांसद अब्दुल्ला (85 वर्ष) लोकसभा सांसद ने कहा कि जब भाजपा नेता सार्वजनिक रूप से घोषणा करते हैं कि वे चुनाव में 50 सीटें जीतेंगे, तो उन्हें ऐसा करने से कौन रोक रहा है.
अब्दुल्ला ने एक बार फिर उपमहाद्वीप में स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान के साथ फिर जल्द से जल्द बातचीत शुरू करने की वकालत की.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने मानवाधिकार के मुद्दे, बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता और भ्रष्टाचार जैसे विभिन्न मोर्चों पर देश की गिरावट के बारे में भी कहा, ‘ये सभी चीजें इस महान राष्ट्र के लिए शुभ नहीं हैं.’
जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने में हो रही देरी पर अब्दुल्ला ने कहा कि जहां तक सरकार का सवाल है, वह हमेशा कहती रही है कि यहां हालात ठीक हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर हालात ठीक हैं तो उन्हें चुनाव कराने से क्या रोकता है. आखिरकार, हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं और इतने सालों से हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार नहीं है. हमारे पास उपराज्यपाल (एलजी) हैं, पर वे लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते हैं, यह एक नौकरशाही सरकार बनकर रह गई है.’
उन्होंने कहा, ‘यह एक निर्वाचित सरकार का समय है.’
अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे को विपक्षी दलों के साथ उठाया था और उन्होंने वह किया जो वे कर सकते थे.
उन्होंने कहा, ‘आखिरकार, यह चुनाव आयोग के ऊपर है. हमने प्रतिनिधित्व किया और विपक्षी दलों ने भी चुनाव कराने के लिए दबाव डाला है. यह अब उन्हें तय करना है.’
उन्होंने पूछा, ‘मैं यह नहीं समझ सकता कि अगर वे जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव और अन्य चुनाव कराना चाहते हैं, तो विधानसभा चुनाव क्यों नहीं ? उन्हें ऐसा करने से क्या रोकता है ?’
अब्दुल्ला ने इस सप्ताह की शुरुआत में अनंतनाग में भाजपा जम्मू कश्मीर इकाई के प्रमुख रविंदर रैना द्वारा दिए गए एक बयान का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी (भाजपा) के विधानसभा चुनाव में 50 से अधिक सीटें जीतने और अपनी सरकार बनाने की संभावना है.
परिसीमन की कवायद के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा में 90 सीटें हैं.
अब्दुल्ला ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि इस देश में कोई भी विधानसभा चुनाव कराने में देरी के कारण को समझने में सक्षम नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अब अगर वे (बीजेपी) जीतने के लिए इतने आश्वस्त हैं, तो उन्हें चुनाव के माध्यम से परीक्षण करने से क्या रोकता है?’
यह पूछे जाने पर कि क्या चुनाव कराने के लिए स्थिति अनुकूल है, अब्दुल्ला ने कहा, ‘ठीक है, वे कहते हैं कि बहुत पर्यटन है, स्थिति बहुत अच्छी है. इसलिए, वे क्या कहते हैं, मैं उसके इतर कुछ और नहीं कहना चाहता हूं. इसलिए मैं कहता हूं कि अगर स्थिति इतनी अच्छी है, तो चुनाव क्यों न कराए जाएं. उन्हें क्या रोक रहा है ?’
उनसे जब फिर पूछा गया कि क्या वास्तव में स्थिति में सुधार हुआ है, तो अब्दुल्ला मुस्कुराए और एक रहस्यमय उत्तर दिया, ‘यह एक मिलियन-डॉलर का प्रश्न है और एक मिलियन डॉलर के प्रश्न का उत्तर देना बहुत कठिन है.’
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी की गोवा की हालिया यात्रा का उल्लेख करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, ‘यह एक बहुत अच्छा कदम है. वह इसलिए आए, क्योंकि हम पड़ोसी हैं और हमारे बीच समस्याएं हैं और हमें मिलकर उन्हें सुलझाना होगा. मुझे उम्मीद है कि सरकार भी इसी तरह से जवाब देगी और इन दोनों देशों के बीच शांति के बेहतर तरीके खोजने की कोशिश करेगी.’
यह पूछे जाने पर कि आतंकवादियों को खदेड़ने की पाकिस्तान की मंशा में कोई गिरावट नहीं आई है, उन्होंने कहा कि आतंकवाद इस त्रासदी का हिस्सा बना हुआ है और यह समाप्त नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार चिल्लाती थी कि शायद (अनुच्छेद) 370 इस आतंकवाद के लिए जिम्मेदार था. पिछले तीन वर्षों से (अनुच्छेद) 370 नहीं है, आतंकवाद अभी भी है, बल्कि यह बढ़ रहा है. इसलिए कुछ तो समस्या है. वे जो भी कहें, आखिरकार हमें अपने पड़ोसी से बात करनी होगी और पिछले 70 सालों से चली आ रही इस जटिल समस्या का समाधान ढूंढना होगा.’
अब्दुल्ला ने कहा, ‘इसने समुदायों में कड़वाहट पैदा कर दी है, इसने हर चीज में कड़वाहट पैदा कर दी है और जब तक हम इसका समाधान नहीं ढूंढते, यह त्रासदी जारी रहेगी.’
केंद्र की मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर के मिले विशेष राज्य के दर्जे को 19 अगस्त, 2019 को समाप्त कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था, जिसमें लद्दाख को पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य से अलग किया गया था.
जी20 की बैठकें आयोजित करने पर उन्होंने आश्चर्य जताया कि जम्मू को कार्यक्रम स्थल के रूप में क्यों नहीं चुना गया.
उन्होंने कहा, ‘मेरी बात सीधी थी कि अगर यह (G20 बैठकें) कश्मीर और लद्दाख में हो सकती हैं, तो जम्मू में क्यों नहीं. इतने सालों में जम्मू के लोगों ने कश्मीर के नेताओं पर उनकी उपेक्षा करने का आरोप लगाया, लेकिन आज केंद्र में भाजपा की सरकार है तो यह (जम्मू) कार्यक्रम स्थल क्यों नहीं है. हो सकता है कि वहां भी कुछ चीजें बेहतर होतीं.’
फारूक अब्दुल्ला ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, तब वे विपक्ष के नेता थे. वह अक्सर अपने साथ जुड़े राष्ट्र-विरोधी टैग को लेकर कड़वाहट महसूस करते हैं.
अब्दुल्ला ने कहा, ‘जब हम उन्हें सच बताते हैं, हम या तो आतंकवादी हैं या तो सांप्रदायिक हैं या फिर हम पाकिस्तानी हैं. भगवान का शुक्र है कि उन्होंने हमें चीन से नहीं जोड़ा. यह उनके काम करने का तरीका है. वे सच सुनना नहीं चाहते.’
इस पर वे कहते हैं, ‘सच कड़वा होता है और जब वे सच सुनना नहीं चाहते हैं, तो वे आप पर सभी लेबल लगाने की कोशिश करते हैं जो उन्हें लगता है कि हमेशा रहेगा. वे हमेशा हमें पाकिस्तानी कहते हैं.’