सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : “पहले नरेंद्र मोदी 400 पार की बात कर रहे थे, छाती फैलाकर चार सौ पार, लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने संविधान को ऐसे सिर पर लगाया, ये काम कांग्रेस पार्टी ने करवाया है। कांग्रेस पार्टी ने साफ उनको कह दिया कि देखो बाकी सब ठीक है, लेकिन संविधान पर आक्रमण किया तो हिंदुस्तान आपको माफ नहीं करेगा, देश आपको माफ नहीं करेगा।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नारायणा गांव में लोहड़ी के कार्यक्रम में शामिल हो रहे थे, ठीक उसी वक्त वहां से 23 किलोमीटर दूर सीलमपुर में राहुल एक चुनावी रैली में नजर आए। राहुल ने अपने 21 मिनट के संबोधन में जिस अंदाज में पीएम नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर निशाना साधा, उसी तेवर में आम आदमी पार्टी (आप) और केजरीवाल पर भी आक्रमक नजर आए। राहुल ने कहा कि केजरीवाल जी ने बहुत प्रचार किया कि दिल्ली को साफ कर दूंगा, भ्रष्टाचार मिटा दूंगा, पेरिस बना दूंगा। अब देखिए हुआ क्या केजरीवाल जी ने अडानी जी के बारे में कुछ बोला है। जब मैं जाति जनगणना की बात करता हूं, न मोदी जी और न केजरीवाल जी के मुंह से एक शब्द निकलता है। केजरीवाल जी देश के सामने कहे कि वो आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं औऱ जाति जनगणना करना चाहते हैं।
राहुल ने सीलमपुर से चुनाव प्रचार का प्रारम्भ कर इरादे किए साफ
सीलमपुर से चुनाव प्रचार का आगाज करके कांग्रेस ने साफ किया कि इस बार दिल्ली का चुनाव एक रणनीति के तहत है। बीजेपी और आम आदमी पार्टी जहां एक तरफ हिंदुत्व की पिच पर है। राहुल गांधी मुस्लिम वोटरों को साधने में हैं और नजर सीधा दलित वोटर्स पर भी है। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के अब तक के आक्रमक अंदाज और तेवरों को पार्टी नेतृत्व ने अपने चुनाव अभियान में अगले पायदान पर ले जाने का जज्बा दिखाया तो माना जा रहा है कि राजधानी का ये चुनाव बेहद रोचक मोड़ ले सकता है। दिल्ली के एमसीडी इलेक्शन में मुस्लिम बहुल इलाके में कांग्रेस दोबारा से मुस्लिमों का विश्वास जीतने में कामयाब रही थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में आप के साथ गठबंधन के बाद स्थिति बदल गई। यही वजह है कि अब कांग्रेस मुस्लिम वोटों को फिर से जोड़ने की कवायद में है।
जिस शराब नीति घोटाले ने आप को बड़े संकट में डाला, उसकी शिकायत कांग्रेस ने ही की थी। हाल ही में महिला सम्मान योजना में फर्जीवाड़े की आशंका की शिकायत लेकर भी कांग्रेस के संदीप दीक्षित ही उपराज्यपाल के पास पहुंचे थे। उन्होंने यह भी कहा है कि पंजाब पुलिस उम्मीदवारों की जासूसी कर रही है और दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पंजाब से कैश लाया जा रहा है। कांग्रेस को उम्मीद है कि उसके कोर वोटर फिर से वापस आ जाएंगे क्योंकि आम आदमी पार्टी इस बार बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे पर है। ओवैसी भी मुस्लिम बहुल इलाकों में उम्मीदवार उतार रहे हैं। मुस्लिम वोटों का बंटना तय है। ऐसे में आम आदमी पार्टी मुस्लिम वोटों पर चुप रहकर जाट आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाने में जुट गई है। कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि वो अपने पुराने मतदाता वर्ग को वापस अपनी तरफ़ आकर्षित करे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो इसकी सीधी क़ीमत आम आदमी पार्टी को चुकानी पड़ सकती है। दिल्ली में कांग्रेस की राजनीतिक विरासत रही है। वहीं मुसलमान मतदाता असमंजस में नज़र आ रहे हैं। यदि कांग्रेस की तरफ़ गए तो कई सीटों के नतीजे बदल सकते हैं।
मुस्लिमों के सहारे कांग्रेस
1998 से 2013 तक लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस 2015 के चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई। पार्टी को सिर्फ 9.65% वोट मिले। वहीं, 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने 24.55% वोट के साथ 8 सीटें जीती थीं। दिल्ली में पार्टी की दुर्गति यहीं नहीं रुकी। 2020 में वोट गिरकर 4.26% रह गया। ऐसे में दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 25-26 ऐसी हैं, जहां मुस्लिम, निम्न मध्यमवर्गीय और अनुसूचित जाति एवं जनजाति मतदाता बहुलता में है। लोकसभा चुनाव में भी इन सीटों पर पार्टी को अच्छा वोट मिला है। इन सीटों में मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, बाबरपुर, सीमापुरी, सीलमपुर, मुस्तफाबाद, गोकलपुर, चांदनी चौक, मटिया महल और बल्लीमारान प्रमुख है। दिल्ली में पांच ऐसी सीटें हैं, जो मुस्लिम बाहुल्य है। इनमें ओखला (43 प्रतिशत), सीलमपुर (50 प्रतिशत), मुस्तफाबाद (37 प्रतिशत), बल्लीमारान (38 प्रतिशत), मटियामहल (49 प्रतिशत) आदि शामिल हैं। कांग्रेस इनमें तो मुस्लिम प्रत्याशी उतार ही रही है, कई हिंदू बाहुल्य सीटों पर भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की तैयारी है। मकसद सिर्फ यही है कि किसी तरह से वोट प्रतिशत बढ़ जाए।
हाथ की करामात पर बीजेपी
कांग्रेस की कोशिश अपना वोट बैंक वापस हासिल करने की है, जिस पर कब्जा कर आप दिल्ली की राजनीति में अजेय बन गई है तो पिछले तीनों लोकसभा चुनाव में सभी सातों सीटें जीतने के बावजूद हर विधानसभा चुनाव में अपमानजनक हार का कड़वा घूंट पीने को मजबूर बीजेपी लगभग 27 साल से दिल्ली की सत्ता से वनवास झेल रही है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर तक कमल खिल जाने के मद्देनजर तो यह चिराग तले अंधेरा जैसी स्थिति है, पर इस बार भी उजाला हाथ की करामात पर ज्यादा निर्भर करेगा। कांग्रेस अपने वोट बैंक का एक ठीकठाक हिस्सा केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ा देगा। कुल मिलाकर कहें तो भले ही कांग्रेस दिल्ली में बहुत कुछ ना कर पाए, लेकिन कांग्रेस जहां खड़ी है यहां से जितना भी आगे बढ़ेगी उससे नुक़सान आप को ही होगा।