नई दिल्ली। संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) एक सीमित संदर्भ में और एक खास उद्देश्य से बनाया गया कानून है, जिसमें सहानुभूतिपूर्ण और सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर स्पष्ट ‘कट ऑफ’ तिथि के साथ कुछ चुनिंदा देशों से आने वाले विशेष समुदायों को छूट देने की कोशिश की गई है। गृह मंत्रालय (एमएचए) की वार्षिक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। सीएए 2019 में बनाया गया था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है।
इसका उद्देश्य हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के उन सदस्यों को नागरिकता प्रदान करना है, जिन्हें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे जिनमें देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग 100 लोगों की मौत हुई थी। गृह मंत्रालय की 2020-21 के लिए जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘सीएए एक सीमित संदर्भ में और एक खास उद्देश्य से बनाया गया कानून है, जिसमें स्पष्ट कट ऑफ तारीख के साथ कुछ चुनिंदा देशों से आने वाले खास समुदायों को छूट देने की कोशिश की गई है।
यह एक सहानुभूतिपूर्ण एवं सुधारात्मक कानून है। इसके अनुसार सीएए भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होता है और इसलिए, यह कानून किसी भी तरह से उनके अधिकारों को कम नहीं करता है। इसमें कहा गया है कि संविधान ने छठी अनुसूची के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र के आदिवासियों और स्वदेशी लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान प्रदान किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए के जरिये संविधान की छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रों और बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन,1873 के तहत ‘इनर लाइन परमिट प्रणाली द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों को बाहर कर दिया गया है।