अशाेक यादव, लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस की सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता के परिवार की याचिका को खारिज कर दिया है। पीड़ित परिवार ने आरोप लगाते हुए याचिका दायर की थी कि जिला प्रशासन ने उनको घर पर अवैध रूप से कैद कर दिया है।
न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया और न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूरे मामले में अपना रुख स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायधीशों ने कहा, “मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए न्यायिक स्वामित्व की मांग है कि इस कोर्ट के लिए मेरिट के आधार पर वर्तमान याचिका पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा, खासकर तब, जब मृतक पीड़िता के परिवार के 1 से 6 सदस्यों को और परिवार के अन्य सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई हो।” कोर्ट ने आगे कहा कि इसी तरह का निर्देश हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अक्टूबर को पहले ही जारी कर दिए थे।
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश राज्य को पहले से ही एक हलफनामा दायर करने के लिए निर्देशित किया गया है, ताकि उसके रुख को स्पष्ट किया जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा, “यदि याचिकाकतार्ओं को कोई शिकायत है, तो वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उचित याचिका / आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं।” बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए, डिवीजन बेंच ने आगे कहा, “उपरोक्त टिप्पणियों के साथ मामले के मेरिट में प्रवेश किए बिना, याचिका खारिज कर दी जाती है।”
गौरतलब है कि हाथरस दुष्कर्म पीड़िता के परिवार के सदस्यों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि जिला प्रशासन ने उन्हें अपने घर में अवैध रूप से कैद कर दिया है और उन्हें स्वतंत्र रूप से बाहर आने-जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
इसलिए, कोर्ट से जिला प्रशासन को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि “परिवार के सदस्यों को अवैध कैद से मुक्त किया जाए और उन्हें अपने घर से बाहर निकलने और लोगों से मिलने की अनुमति दी जाए।” पीड़िता के पिता ओमप्रकाश की ओर से अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत के राष्ट्रीय महासचिव एक सुरेंद्र कुमार ने याचिका दायर की थी।