सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर बुधवार तो शपथ लेंगे. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु उन्हें सुबह दस बजे CJI के तौर पर शपथ दिलाएंगी. न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार होगा जब पिता- पुत्र CJI बने हो. उनके पिता जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ भी सात साल से ज्यादा समय तक CJI रहे थे.जस्टिस चंद्रचूड़ प्रोग्रेसिव और लिबरल जज माने जाते हैं.जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ को मेहनती जज कहा जाता है. अपने जन्मदिन पर भी चंद्रचूड़ लगातार कई घंटों तक काम करते रहे थे.
नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर संवेदनशील और हनन करने वालों के प्रति कड़े रूख के लिए जाने जाते हैं जस्टिस चंद्रचूड़ इस पद पर ठीक दो साल यानी 10 नवंबर 2024 तक रहेंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ की सबसे विशिष्ट खासियत है कि वो धैर्य से सुनवाई करते हैं. कुछ दिन पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने लगातार दस घंटे तक सुनवाई की थी. सुनवाई पूरी करते हुए उन्होंने कहा भी था कि काम ही पूजा है. कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता पूर्व चीफ जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है.
जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं. उनके फैसलों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि सब बताना संभव नहीं है. हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसले में, जिसने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया पर फैसला लिया था.अविवाहित या अकेली गर्भवती महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात करने से रोकने के कानून को रद्द कर सभी महिलाओं को ये अधिकार दिया है. पहली बार मेरिटल रेप को परिभाषित करते हुए पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने से गर्भवती विवाहित महिलाओं को भी नया अधिकार दिया है. उन्होंने कहा कि ये समानता के अधिकार की भावना का उल्लंघन करता है. वैवाहिक संस्थानों के भीतर अपमानजनक संबंधों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए, उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने पहली बार वैवाहिक बलात्कार के अपराध को कानूनी मान्यता देते हुए फैसला सुनाया कि एक विवाहित महिला की जबरदस्ती गर्भावस्था को गर्भपात के प्रयोजनों के लिए “वैवाहिक बलात्कार” के रूप में माना जा सकता है.
महिला अधिकारों को लेकर उन्होंने सेना व नेवी में परमानेंट कमीशन जैसे फैसले सुनाए हैं. वहीं, नोएडा एक्सप्रेस वे पर अवैध तरीके से बनाई गई सुपर टेक ट्विन टावर को भी ढहाने के आदेश उन्होंने जारी किए थे. सोशल पोस्ट करने पर पत्रकार मोहम्मद जुबैर को तुरंत जमानत पर रिहा करने के आदेश को लेकर भी इनकी चर्चा हुई थी. जस्टिस चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों का हिस्सा भी रहे हैं. अयोध्या का ऐतिहासिक फैसला, निजता के अधिकार, व्यभिचार को अपराध से मुक्त करने और समलैंगिता को अपराध यानी IPC की धारा 377 से बाहर करने, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश, और लिविंग विल जैसे बड़े फैसले दिए हैं.
वह उन जजों में से एक हैं, जिन्होंने कभी-कभी अपने साथी जजों के साथ सहमति भी नहीं जताई. आधार के प्रसिद्ध फैसले में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत से असहमति जताते हुए कहा था कि आधार को असंवैधानिक रूप से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था जो कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था. उन्होंने भीमा कोरेगांव में कथित रूप से हिंसा भड़काने के आरोपी पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से संबंधित एक मामले में भी असहमति जताई थी, जब पीठ के अन्य दो जजों ने पुणे पुलिस को कानून के अनुसार अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी थी.