अशाेक यादव, लखनऊ। विधानसभा चुनाव में ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब सरकारी नौकरी छोड़कर बड़े अधिकारी राजनीति के मैदान में किस्मत आजमाने के लिए आ रहे हैं। असीम अरुण और राजेश्वर सिंह इसकी मिसाल हैं। जानकारी बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के दौरान इस तरह सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में किस्मत आजमाने की नजीर नहीं मिलती।
इस कड़ी में राजेश्वर सिंह ने वीआरएस के लिए सबसे पहले आवेदन अगस्त माह में किया था। हालांकि उनका वीआरएस पांच महीने बाद स्वीकार हुआ। इस दौरान चुनाव की घोषणा होते ही कानपुर नगर के पुलिस आयुक्त रहे असीम अरुण ने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया और आनन फानन में उनका वीआरएस स्वीकृत भी हो गया।
उन्होंने भाजपा जॉइन की और भाजपा ने उन्हें कन्नौज सुरक्षित सीट से टिकट भी दे दिया। असीम अरुण का रिटायरमेंट अक्तूबर 2030 में था। उन्होंने 8 साल 10 महीने पहले ही खाकी वर्दी उतार कर खादी धारण कर ली।
उधर, राजेश्वर सिंह के पहले गाजियाबाद की किसी सीट से चुनाव लड़ने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन वीआरएस स्वीकृत होने में समय लग गया तब तक तीन चरण के नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। राजेवश्वर को लखनऊ की सरोजनीनगर सीट से प्रत्याशी बनाया गया है।
इन अधिकारियों से पहले भी कई ऐसे नौकरशाह रहे हैं जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद राजनीति में किस्मत आजमाई और विधानसभा से लेकर लोकसभा और राज्यसभा तक पहुंचे। प्रमुख लोगों में समाजवादी पार्टी के अहमद हसन डीआईजी के पद से रिटायर हुए थे। मायावती सरकार में मुख्य सचिव रहे पीएल पुनिया कांग्रेस से सांसद रहे और अहम पदों पर तैनाती मिली। जनरल वीके सिंह भाजपा से मौजूदा समय में गाजियाबाद से सांसद हैं।
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सतपाल सिंह भी भाजपा से सांसद हैं। उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे बृज लाल भाजपा में हैं और वह राज्यसभा सांसद है। टी राम चीफ इंजीनियर थे। अब भाजपा में हैं। बसपा के टिकट पर वह विधायक रह चुके हैं। बासुदेव यादव बेसिक शिक्षा निदेशक रहे हैं और अब समाजवादी पार्टी से विधानपरिषद में सदस्य हैं।
मुख्य सचिव रहे अनीस अंसारी कांग्रेस में पदाधिकारी हैं। सूर्य कुमार शुक्ला डीजी की रैंक से रिटायर हुए और अब भाजपा में हैं। आईएएस रहे राम बहादुर और किशन सिंह अटोरिया भी अब भाजपा में हैं। इसके अलावा भी तमाम ऐसे नेता हैं जो पहले नौकरशाह थे।