अशाेक यादव, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन प्रतिषेध एक्ट को लेकर सियासी पारा चढ़ने लगा है। सोमवार को बहुजन समाज पार्टी ने सरकार से इस एक्ट पर पुनर्विचार करने की मांग की जबकि इसके पहले समाजवादी पार्टी ने दो टूक कहा कि इस तरह का कोई कानून उसे मंजूर नहीं है और इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा। दूसरी तरफ मुस्लिम धर्म गुरुओं की ओर से भी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है।
सोमवार को बसपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने ट्वीट कर पार्टी की मंशा को जाहिर किया। मायावती ने ट्वीट किया कि लव जिहाद को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आपाधापी में लाया गया धर्म परिवर्तन अध्यादेश अनेक आशंकाओं से भरा है जबकि देश में कहीं भी जबरन व छल से धर्मांतरण को ना तो खास मान्यता और ना ही स्वीकार्यता है। उन्होंने आगे कहा कि इस संबंध में कई कानून पहले से ही प्रभावी हैं। सरकार इस पर पुनर्विचार करे, बसपा की यह मांग है।
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध एक्ट, 2020 को मंजूरी दे दी है जिसमें जबरन या धोखे से धर्मांतरण कराए जाने और शादी करने पर 10 वर्ष की कैद और विभिन्न श्रेणी में 50 हजार रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। राज्यपाल की मंजूरी के बाद उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध एक्ट, 2020 की अधिसूचना शनिवार को जारी कर दी गई।
राज्यपाल से इस एक्ट को मंजूरी मिलने के कुछ घंटे बाद ही शनिवार को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि जब यह विधेयक विधानसभा में पेश होगा तो उनकी पार्टी पूरी तरह विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि सपा ऐसे किसी कानून के पक्ष में नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार एक तरफ अंतरजातीय और अन्तर्धामिक विवाह को प्रोत्साहन दे रही और दूसरी तरफ इस तरह का कानून बना रही है, तो यह दोहरा बर्ताव क्यों है?
गौरतलब है कि एक्ट छह माह तक प्रभावी रह सकता है और इस अवधि के भीतर कानून बनाने के लिए विधानसभा में विधेयक लाना जरूरी होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में पिछले मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक में इस एक्ट को मंजूरी दी गई थी। इसमें विवाह के लिए छल, कपट, प्रलोभन देने या बल पूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर अधिकतम 10 वर्ष कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।