लखनऊ। आजादी के 75वीं वर्षगांठ व अमृत महोत्सव पर देश जश्न में डूबा नजर आ रहा है। हर जगह गांव, शहर, देश तिरंगा से रंगा हुआ है। जहां तक नजर जाएगी तिरंगा ही नजर आएगा लेकिन क्या आप जानते हैं तिरंगे में कितने बार बदलाव किया गया है। पहले कैसा दिखता था ये सब बातें आपके मन में जरूर आती होंगी। तो आइये एक नजर हम इतिहास पर नजर डालते हैं।
पहला राष्ट्रीय ध्वज, 1906
पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। इसमें ऊपर हरा, बीच में पीला और नीचे लाल रंग था। साथ ही इसमें कमल के फूल और चांद-सूरज भी बने थे।
दूसरा राष्ट्रीय ध्वज, 1907
दूसरा झंडा पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। हालांकि, कई लोगों का कहना है कि यह घटना 1905 में हुई थी। यह भी पहले ध्वज के जैसा ही था। हालांकि, इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह झंडा बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तीसरा राष्ट्रीय ध्वज,1917
तीसरा ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया था। इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। वहीं, बांई और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
आजादी के 75वीं वर्षगांठ व अमृत महोत्सव पर देश जश्न में डूबा नजर आ रहा है। हर जगह गांव, शहर, देश तिरंगा से रंगा हुआ है। जहां तक नजर जाएगी तिरंगा ही नजर आएगा लेकिन क्या आप जानते हैं तिरंगे में कितने बार बदलाव किया गया है। पहले कैसा दिखता था ये सब बातें आपके मन में जरूर आती होंगी। तो आइये एक नजर हम इतिहास पर नजर डालते हैं।
पहला राष्ट्रीय ध्वज, 1906
पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। इसमें ऊपर हरा, बीच में पीला और नीचे लाल रंग था। साथ ही इसमें कमल के फूल और चांद-सूरज भी बने थे।
दूसरा राष्ट्रीय ध्वज, 1907
दूसरा झंडा पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। हालांकि, कई लोगों का कहना है कि यह घटना 1905 में हुई थी। यह भी पहले ध्वज के जैसा ही था। हालांकि, इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह झंडा बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तीसरा राष्ट्रीय ध्वज,1917
तीसरा ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया था। इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। वहीं, बांई और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
चौथा ध्वज, 1921
चौथा ध्वज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह कार्यक्रम साल 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया था। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
पांचवा ध्वज, 1931
इसके बाद पांचवा झंडा आया जो अभी वाले झंडे से थोड़ा ही अलग था। इसमें चक्र के स्थान चरखा था। साल 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार साल है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
स्वतंत्र भारत का तिरंगा
आखिरकार, 21 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। हालांकि, कई लोगों को मानना है कि 22 जुलाई को इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया था…
स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।