बीकानेर। जल जंगल और जमीन जिनका अत्यधिक दोहन एवँ बढ़ता प्रदूषण मानवीय जीवन की त्रासदी है । मानव अपने हितों के खातिर इन सब को ताक पर रख कर मानवीय मूल्यों को खोता जा रहा है जो आने वाले समय की सबसे बड़ी विपदा के रूप में सामने होगी । प्राचीन समय से बारिश पर निर्भर किसान समय के बदलाव के साथ नहरी पानी से कृषि करने लगा यहाँ तक तो बात ठीक थी पर समय के साथ नए तरीकों की उपज से अत्यधिक भू जल के दोहन से डार्क जोन होते एरिये बंजर होती जमीन इसका प्रमाण है जिससे आने वाला कल चिंता की लकीरें खींच रहा है । जंगलो में लगती आग घटते जंगल घटते वन्य जीव घटती वन्य ओषधिया कही पहाड़ो पर बम तो कही वनों पर कुल्हाड़ी तो दूसरी और ऑक्सीजन की मारामारी कहि मनुष्यो को प्राकृतिक सांस लेने में तो कहीं हिचकोले नहीं खिला रही ऐसा प्रतीत होता है जिसका नजरिया कोरोना काल में द्रश्यमान हो चुका है ।
प्रदूषण का सबसे बडा पर्याय बन चुका प्लास्टिक जमीन को कितना नुकसान पहुंचा रहा है इसकी निचली सतह पर आज कहीं से भी खोदने पर सबसे पहले प्लास्टिक के दर्शन होते है जो जमीन की उर्वरा शक्ति का हास्य कर रहा है । बड़े शहरों के साथ अब ग्रामीण क्षेत्रो में भी ध्वनि ,वायु ,जल प्रदूषण आम बात हो चली है सरकारें चाह कर भी इन पर नियंत्रण नही कर पा रही है आम जन भीतर की आवाज को सुन कर जल जंगल जमीन की सुरक्षा करे तभी मानवीय त्रासदी से बचा जा सकता है ।
यह कहना है बीकानेर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पैनल सदस्य श्रेयांस बैद का तभी सही मायनों में पर्यावरण दिवस मनाने की सार्थकता होगी ।
बढ़ता प्रदूषण मानवीय जीवन की त्रासदी : श्रेयांश वैद्य
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