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कार्य बल में महिलाओं की संख्या उनकी क्षमता से बहुत कम है: राष्ट्रपति कोविंद

तिरुवनंतपुरम। भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बृहस्पतिवार को कहा कि गहरे सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण कार्यबल में महिलाओं का अनुपात उनकी क्षमता के मुकाबले बहुत कम है और ऐसा पूरी दुनिया में है। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग के बीच राष्ट्रपति ने कहा कि देश के विभिन्न कार्यकारी निकायों में महिलाओं का और प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने देश की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ समारोह के तहत यहां केरल विधानसभा में आयोजित राष्ट्रीय महिला विधायक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर कहा कि 1857 के बाद से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने ‘‘अहम भूमिका’’ निभाई है और ब्रितानी शासन के खिलाफ कई प्रदर्शन उनकी व्यापक भागीदारी के कारण सफल हुए। कोविंद ने रानी लक्ष्मीबाई, कस्तूरबा गांधी और सरोजिनी नायडू समेत भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कई महिला नेताओं के बलिदान एवं योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि देश की आजादी के बाद से महिलाएं एक के बाद एक हर क्षेत्र में अवरोधकों को तोड़कर आगे बढ़ रही हैं।

उन्होंने जिक्र किया कि जब राष्ट्र के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने लिए संविधान सभा एकत्र हुई थी, तो उसमें 15 महिला सदस्य थीं, जिनमें तीन केरल से थीं। कोविंद ने कहा, ‘‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और प्रबंधन जैसे पारंपरिक रूप से पुरुष के गढ़ों में उनकी (महिलाओं की) संख्या बढ़ रही है।’’ उन्होंने कोरोना वायरस संकट का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘संकट के उन महीनों में राष्ट्र की रक्षा करने वाले कोरोना योद्धाओं में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं रही होंगी।

आबादी के लगभग आधे हिस्से- महिलाओं के लिए ऐसी उपलब्धियां आम बात होनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है।’’ कोविंद ने कहा, ‘‘हमें स्वीकार करना होगा कि वे गहरे सामाजिक पूर्वाग्रहों का शिकार हैं। कार्य बल में उनकी संख्या उनकी क्षमता से बहुत कम है। राजनीति में भी आपको और अधिक संख्या में चुनाव लड़ना और जीतना चाहिए। यह दुखद स्थिति निश्चित रूप से पूरी दुनिया में है। इस मामले को वैश्विक परिदृश्य में देखने से हमें यह एहसास करने में मदद मिलती है कि हमारे सामने मानसिकता को बदलने की चुनौती है- यह एक ऐसा काम है, जो कभी आसान नहीं रहा।

’’ कोविंद ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम ने भारत में लैंगिक समानता के लिए एक ठोस नींव रखी और तब से देश पहले ही एक लंबा सफर तय कर चुका है, लोगों की मानसिकता में कुछ बदलाव आया है और तीसरे लिंग एवं अन्य लैंगिक पहचानों समेत लैंगिक संवेदनशीलता भी बढ़ी है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे आदर्शों और मूल्यों से प्रेरित होकर हम इन सात दशकों में और आगे बढ़े हैं और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है।

मुझे लगता है कि इसे ‘महिला सशक्तीकरण’ कहना गलत है, क्योंकि महिलाएं वैसे भी शक्तिशाली हैं। क्या हम यह नहीं कहते कि वे ‘शक्ति’ का प्रतीक हैं।’’ कोविंद ने कहा, ‘‘यदि राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी बेहतर भागीदारी किसी भी तरीके से सशक्तीकरण है, तो यह पूरे समाज का सशक्तीकरण है, क्योंकि आप सभी शासन में गुणवत्ता लाती हैं, आप महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती हैं।’’ इस कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, राज्य विधानसभा के अध्यक्ष एम बी राजेश, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वी डी सतीसन, वाम सरकार के कई मंत्री और देश भर की महिला विधायक भी शामिल हुईं।

खान ने इस मौके पर कहा कि अब समय आ गया है कि हम ‘‘महिलाओं के विकास से आगे सोचें और महिला नीत विकास की ओर आगे बढ़ें।’’ उन्होंने कहा कि आजादी के सात दशक के बाद भी यह विडंबना है कि अब भी ऐसे लोग हैं, जो दमन को पसंद करते हैं और महिलाओं पर ‘‘पितृसत्तात्मक प्रतिबंध’’ लगाकर उन्हें हाशिए पर रखना चाहते हैं।

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