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उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती भूमि पेडनेकर की ‘दुर्गामती’

फिल्म: दुर्गामती
डायरेक्टर: जी अशोक
स्टारकास्ट: भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, करण कपाड़िया, माही गिल, जिशु सेनगुप्ता

बॉलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर की हॉरर-थ्रिलर फिल्म दुर्गामती अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो चुकी है। इसमें भूमि के अलावा अरशद वारसी, जिशु सेनगुप्ता, माही गिल और करण कपाड़िया जैसे सितारों ने काम किया है। फिल्म को एंटरटेनिंग बनाने के लिए तमाम कोशिश की गई है जो बेकार साबित होती हैं।

कहानी
फिल्म दुर्गामती की कहानी ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) से शुरू होती है। ईश्वर प्रसाद ईमानदार नेता और जल संसाधन मंत्री है। उसके इलाके में मंदिरों से पुरानी मूर्तियां चोरी हो रही हैं, जिससे लोगों में बहुत नाराजगी है। ऐसे में ईश्वर प्रसाद लोगों से वादा करता है कि वह 15 दिनों अंदर मूर्तियां वापस लाएगा और अगर ऐसा नहीं होता है तो वह राजनीति से संन्यास ले लेगा। 

अब मूर्तियां वापस लाकर ईश्वर प्रसाद जनता के बीच हीरो ना जाए इसके लिए दूसरी पार्टी के नेता उसके खिलाफ एक साजिश रचते हैं। इसके लिए सीबीआई अधिकारी शताक्षी गांगुली (माही गिल) को काम पर लगाया जाता है। ईश्वर प्रसाद के बारे में पता करने के लिए आईएएस ऑफिसर चंचल चौहान (भूमि पेडनेकर) से पूछताछ की जाती है जो ईश्वर प्रसाद की सेक्रेटरी रह चुकी हैं और खून के इल्जाम में जेल में सजा काट कर रही है। अब इस कैदी को एक पुरानी और सुनसान हवेली में रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। यही से फिल्म दुर्गामती की असली कहानी से शुरू होती है। फिल्म में ऐसे कई हॉरर सीन हैं जो बेवजह क्रिएट किए गए हैं। हालांकि, फिल्म में ऐसे कई ट्विस्ट हैं, जो काफी मजेदार हैं। इसके क्लाइमैक्स में क्या होता है यह जानने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी।

एक्टिंग
भूमि पेडनेकर को एक्सपेरिंटल रोल्स के लिए जाना जाता है, लेकिन इस फिल्म उनकी एक्टिंग का जादू नहीं चला। भूमि के चेहरे के हाव-भाव और डायलॉग्स आपस में मेल नहीं खाते हैं। माही गिल को काम को ठीक-ठीक कहा जा सकता है। जीशु सेनगुप्ता की ओवरएक्टिंग बर्दाश्त से बाहर है। अरशद वारसी ने भी ठीक काम किया है। करण कपाड़िया की बात करें तो अगर वह फिल्म में नहीं भी होते तो कोई फर्क नहीं पड़ता।

डायरेक्शन
फिल्म दुर्गामती का निर्देशन जी अशोक ने किया है। इसकी स्क्रिप्ट काफी कमजोर हैं ऐसे में इसके डायरेक्शन में कुछ कमाल करना संभव ही नहीं है। एक बेहतर स्क्रिप्ट ही फिल्म को उम्दा बनाने का काम करती है। फिल्म में कई खामियां हैं और सितारों की परफॉर्मेंस भी निराश करती है। फिल्म का राजनीतिक एंगल काफी बोर करने वाला है। इसके अलावा फिल्म के कई हॉरर सीन भी बेतुके लगते हैं।

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