नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने सरकार और आरबीआई (RBI) के बीच चल रही खींचतान के बीच राजकोषीय घाटे को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि इस घाटे को कम करने के लिए हमें रिजर्व बैंक या किसी और संस्था से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं चाहिए. हालांकि अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने यह जरूर कहा कि रिजर्व बैंक (RBI) के पूंजी ढांचे के लिये जो भी नई रूप रेखा बनेगी और उससे जो अतिरिक्त कोष प्राप्त होगा, उसका इस्तेमाल भविष्य की सरकारें आने वाले सालों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में कर सकतीं हैं. इंटरव्यू में वित्त ने मंत्री कहा कि हमें अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पाने के लिये अन्य संस्थाओं से किसी तरह के अतिरिक्त पैसे की आवश्यकता नहीं है.
मैं इसे स्पष्ट करना चाहता हूं कि सरकार की इस तरह की कोई मंशा नहीं है. हम यह भी नहीं कह रहे हैं कि अगले छह माह में हमें कुछ पैसा दीजिये. क्योंकि हमें इसकी जरूरत ही नहीं है. रिजर्व बैंक के कोष पर सरकार की नजर होने की बात को लेकर हो रही आलोचना पर जेटली ने कहा कि पूरी दुनिया में केन्द्रीय बैंक के पूंजी ढांचे की एक रूप रेखा तय होती है. इसमें केन्द्रीय बैंक द्वारा रखी जाने वाली आरक्षित राशि तय करने का प्रावधान किया जाता है. हम केवल यही कह रहे हैं कि इस बारे में कुछ चर्चा होनी चाहिये, कुछ नियम होने चाहिये जिसके तहत रिजर्व बैंक के लिये पूंजी ढांचे की रूपरेखा तय हो.
उन्होंने कहा कि ऐसे में जो अधिशेष राशि होगी उसका इस्तेमाल भविष्य की सरकारें अगले कई वर्षों तक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिये कर सकती हैं. रिजर्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड ने इस माह हुई अपनी बैठक में रिजर्व बैंक के आर्थिक पूंजी ढांचे की रूप रेखा (ईसीएफ) तय करने के लिये एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति बिठाने का फैसला किया है. यह समिति केन्द्रीय बैंक के पास रहने वाली आरक्षित पूंजी का उचित स्तर के बारे में सुझाव देगी. समझा जाता है कि रिजर्व बैंक के पास इस समय 9.59 लाख करोड़ रुपये का भारी भरकम कोष रखा है. गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सरकरा के एक नए फैसले की वजह से आरबीआई और सरकार के बीच सुलह की संभावना कम बताई जा रही थी. केंद्र सरकार के नए प्रस्ताव के बाद इसकी संभावना अब कम ही दिख रही है.
दरअसल, केंद्र सरकार ने आरबीआई पर निगरानी रखने के लिए नियमों में बदलाव का नया प्रस्ताव रखने का मन बनाया है. जानकारों के अनुसार अगर ऐसा होता है तो यह जहां एक तरफ आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच तनातनी को और बढ़ाएगा वहीं भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेशकों के विश्वास को भी कम कर सकता है. केंद्र सरकार ने सिफारिश की थी कि आरबीआई बोर्ड के मसौदे के नियम वित्तीय स्थिरता, मौद्रिक नीति संचरण और विदेशी मुद्रा प्रबंधन सहित अन्य कार्यों की निगरानी के लिए पैनल स्थापित करने में सक्षम हैं.सूत्रों के अनुसार इसका साफ तौर पर मतलब यह हुआ कि केंद्र सरकार की मंशा नियामक बोर्ड को और सशस्त बनाने की है.