लखनऊ, 23 मार्च। भाजपा आलाकमान ने मध्यप्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम तय कर दिया है। वे आज रात 9 बजे राजभवन में शपथ लेंगे। 20 मार्च को कमलनाथ के इस्तीफे के बाद सीएम पद की दौड़ में शिवराज ही सबसे मजबूत दावेदार थे।
वे 2005 से 2018 तक लगातार 13 साल सीएम रह चुके हैं। इस दौरान उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मध्यप्रदेश के इतिहास में पहला मौका होगा, जब कोई चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा।
शिवराज के अलावा अब तक अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल तीन-तीन बार सीएम रहे हैं। इस बार शिवराज के साथ-साथ नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा के नाम की भी चर्चा थी।
भाजपा विधायक दल की बैठक से पहले गोपाल भार्गव ने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद विधायक दल की बैठक शुरू हुई। बैठक में शिवराज और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा मौजूद थे। गोपाल भार्गव ने शिवराज के नाम का प्रस्ताव रखा।
शर्मा ने उसका समर्थन किया। कुछ ही विधायक बैठक में मौजूद थे। कोरोना का संक्रमण न फैले, इसका एहतियात लेते हुए बाकी विधायकों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक में हिस्सा लिया। सभी विधायकों ने शिवराज के नाम पर मुहर लगाई और उन्हें अपना नया नेता चुन लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को चार बार बात की। इसके बाद शिवराज को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया। मोदी ने शिवराज को कल ही इस बात के संकेत दे दिए थे कि उन्हें मुख्यमंत्री पद संभालना है।
सोमवार सुबह गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने बैठक की और इस फैसले को अंतिम रूप दिया। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने बताया कि विधायक दल की बैठक के बाद हम राज्यपाल से मिलने जाएंगे।
15 सालों तक सत्ता में रही भाजपा सरकार जब दिसंबर 2018 में चुनाव हार गई, तो उसके बाद शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक करियर पर भी सवाल खड़े होने लगे थे। खबरें थीं कि शिवराज को केंद्र में भेजा जा सकता है लेकिन उन्होंने मध्य प्रदेश में ही रहने की इच्छा जताई।
शिवराज हार के बाद भी प्रदेश में सक्रिय रहे। शिवराज ने इसी साल जनवरी में सिंधिया से मुलाकात भी की थी। हालांकि, इसे उन्होंने शिष्टाचार भेंट बताया था। मध्यप्रदेश में हाल ही में 17 दिन तक चले सियासी ड्रामे से सबसे ज्यादा फायदे में शिवराज रहे।
भाजपा सरकार बना लेती है, तब उसे विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा। पिछले साल महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने विधायकों के समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
इसके बाद भी उन्हें विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से गुजरना पड़ा, जिसमें वे जीत गए। कर्नाटक में भी 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा बनी। राज्यपाल ने सबसे बड़े दल भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाया और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने। 6 दिन बाद ही येदियुरप्पा ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया। इसी तरह शिवराज को भी फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा।