मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ। भारत वर्ष में महामारी बनते जा रहे लकवा अटैक के मरीज को यदि साढ़े चार घंटे के अंदर समुचित इलाज मिल जाये तो विश्व में हर 40 सेकेण्ड में इस रोग से ग्रस्त होने वालों की जान बचा कर मौतों की संख्या घटाई जा सकती है। हर 4 मिनिट में एक व्यक्ति लकवा से मरता है,भारत में लकवा मृत्यु एक बड़ा कारण है। यदि समय रहते जीवन पद्द्ति में सुधार किया जाय तो लकवा अटैक के मरने मरने वालों की संख्या में भारी कमीं आ सकती है।
एसजीपीजीआई लखनऊ में न्यूरॉन विभाग के प्रमुख डॉ सतीश प्रधान 29 अक्टूबर विश्व लकवा दिवस के पूर्व संस्थान में आयोजित एक लकवा अटैक से जागरूकता के कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समय से सिटी स्कैन न मिलने और ज्यादातर स्थानों पर नीम -हकीमी के कारण ब्रेन /हार्ट स्टोक के मरीज खतरे में पड़ जाते हैं। जाड़े के मौशम में रक्त मोटा हो जाने से धमनियों में उसका संचार बाधित होता है।समय रहते एसजीपीजीआई में मरीज आ जाये तो उसकी जान बचायी जा सकती है। वहां 24 घंटे इसके इलाज के लिए यूनिट कार्यरत है। कार्यक्रम में डा. वीके पालीवाल, डा. विनीता एलिजाबेथ, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी आशुतोष सोती, संजय द्विवेदी समेत तमाम लोग उपस्थित रहे।
प्रमुख लक्षण
उच्य रक्त चाप (ब्लेड प्रेसर), डायवटीज़ (शुगर),दिल से सम्बंधित बिमारियों,धूम्रपान,मदपान और किसी भी रूप में तम्बाकू के सेवन करने वालों में ये खतरा ज्यादा रहता है। एक -हाथ पैर में अचानक कमजोरी आना ,बोलने में दिक्कत होना ,धुंधला दिखना,अचानक बेहोश होना,और लड़खड़ाना इस रोग का प्रमुख लक्षण है। वंशानुक्रम होने वाला यह अटैक गोरों की अपेक्षा काले लोगों में अनुपातिक रूप से अधिक होता है।
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