अशाेक यादव, लखनऊ। अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है। कोर्ट के फैसले को एक पक्ष ने जहां ऐतिहासिक बताया है तो वहीं दूसरे पक्ष ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी, एआईएमआईएम के अध्यक्ष और सांसद असदउद्दीन ओवैसी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सीबीआई की विशेष कोर्ट के फैसले पर सख्त नाराजगी जाहिर की है।
फैसले के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा है कि कोर्ट ने साक्ष्यों को नजरअंदाज किया है। ढांचा ढहाए जाने के समय वहां पुलिस व प्रशासन के अधिकारी, वरिष्ठ पत्रकार भी मौजूद थे। उनकी गवाहियों का क्या हुआ? क्या वह लोग झूठ बोल रहे हैं? जिलानी ने कहा है कि वह अब इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष और सांसद असदउद्दीन आवैसी ने कोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद पत्रकार वार्ता कर अपना विरोध दर्ज कराया। ओवैसी ने आज अपराधियों को क्लीनचिट दी जा रही है, यह न्याय के इतिहास का काला दिन है।
ओवैसी ने कहा कि यह आखिरी फैसला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आखिरी निर्णय होता है। कोर्ट के फैसले से असहमत होना, अवमानना नहीं होता।
ओवैसी ने कहा कि सीबीआई को अपनी स्वतंत्रता बरकरार रखनी होगी तो वह अपील करेगी। यदि वह फैसले के खिलाफ अपील नहीं करेगी तो हम हम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से कहेंगे कि इसके खिलाफ अपील करे। एआईएमआईएम अध्यक्ष ने कहा कि उस दिन क्या कोई जाद हुआ था?
किसने किया था मेरी मस्जिद को शहीद? ओवैसी ने कहा कि बाबरी मस्जिद को ढहाने वालों को दोषमुक्त कर संदेश दिया जा रहा है कि मथुरा और काशी में भी यही करो, रुल ऑफ लॉ की चिंता नहीं है, वे करते जाएँगे, क्लीन चिट मिलता जाएगा।
माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी सीबीआई के विशेष कोर्ट के निर्णय पर आश्चर्य जाहिर किया है। येचुरी ने फैसले का मजाक बताते हुए ट्वीट कर कहा, यह न्याय का मजाक बनाने जैसा है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के आरोपियों को बरी कर दिया गया है।
एक मस्जिद खुद गिर गई? उस समय की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने इसे कानून का भयावह उल्लंघन बताया था। अब ये फैसला! शर्मनाक।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, इस निर्णय से यही साबित होगा कि न्यायपालिका में न्याय नहीं होता। बस एक भ्रम रहता है कि न्याय किया जाएगा। भूषण ने कहा, ऐसे ही निर्णय की संभावना थी।
क्योंकि जमीन के मालिकाना हक पर फैसला पहले ही सुनाया जा चुका है। वो भी उस पक्ष के हक में, जो मस्जिद ढहाए जाने का आरोपी था। प्रशांत भूषण ने कहा कि इस फैसले से मुसलमान समुदाय में द्वेष बढ़ेगा क्योंकि कोई भी फैसला उन्हें अपने हक में नहीं लगेगा।