शिमला: कई राज्यों में फैले छात्रवृत्ति घोटाले को अंजाम देने के लिए हिमाचल से लेकर दिल्ली तक गोटियां बिठाई गईं थीं। केंद्र और राज्य सरकार के कई अफसरों की मिलीभगत से सरकारी पैसे का गोलमाल हुआ। सीबीआई के पास पहुंची शिक्षा विभाग की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट पर बिना हस्ताक्षर के ही 500 करोड़ से ज्यादा की छात्रवृत्तियां जारी हुईं। साल 2018 में हिमाचल सरकार के शिक्षा सचिव डॉ। अरुण शर्मा की जांच रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 के बाद किसी भी शिक्षा सचिव ने यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट पर काउंटर साइन नहीं किए।
नियमानुसार शिक्षा सचिव के काउंटर साइन के बाद ही केंद्र बजट जारी करता है। यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट पर आखिरी हस्ताक्षर तत्कालीन शिक्षा सचिव डॉ। श्रीकांत बाल्दी के हैं। रिपोर्ट में बताया कि बिना काउंटर साइन के एक पैसा अधिकारी जारी नहीं कर सकते। इसके बावजूद हिमाचल से बजट की मांग को लेकर प्रस्ताव भेजा और केंद्र में बैठे अफसरों ने बिना जांच किए बजट जारी किया। रिपोर्ट में हिमाचल से लेकर दिल्ली तक बैठे बड़े अफसरों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। इस घोटाले के लिए अफसरशाही और नेताओं की जुगलबंदी को भी जिम्मेदार ठहराया गया है। जांच रिपोर्ट पर सीबीआई मंथन कर रही है।
आने वाले दिनों में कई अफसर सीबीआई के राडार पर रहेंगे। छात्रवृत्ति राशि के आवंटन को लेकर साल 2009-10 में लगा ऑडिट पैरा भी बिना पड़ताल के अगले साल हटा दिया। साल 2014-15 में कैग ने दस करोड़ की छात्रवृत्ति आवंटन पर सवाल उठाए थे। कैग की इन आपत्तियों को उच्च अधिकारियों के ध्यान में भी नहीं लाया गया। इन ऑडिट पैरा को निचले स्तर पर ही बिना ठोस कार्रवाई के हटा दिया। रिपोर्ट में बताया कि एक निजी शिक्षण संस्थान में एससी/एसटी के विद्यार्थियों के लिए 800 सीटें थीं, जबकि एडमिशन 3300 को दे दी गई। शिक्षा निदेशालय ने भी बिना जांच 3300 विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति राशि जारी कर दी ।