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आज़ाद भारत में भी ‘शहीद’ क्यों नहीं हैं देश के रीयल हीरो भगत सिंह

अशाेक यादव, लखनऊ। भगत सिंह की शहादत किसी से छिपी नहीं है। जनता तो उन्‍हें शहीद-ए-आजम कहती है। लेकिन सरकार ऐसा नहीं मानती। देश को आजाद हुए सात दशक से अधिक हो गए, लेकिन हम अपने रीयल हीरो के साथ न्‍याय नहीं कर सके।

इसीलिए आज भी किताबों में उन्‍हें ‘क्रांतिकारी आतंकी’ लिखा जा रहा है। ताज्‍जुब की बात यह है कि अगस्‍त 2013 में मनमोहन सरकार ने राज्‍यसभा में भगत सिंह को शहीद माना था। इसकी कार्यवाही भी गई थी। इसके बावजूद अब तक रिकॉर्ड में सुधार नहीं हुआ।

इस बारे में वर्तमान गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने थोड़ी दिलचस्पी जरूर ली थी लेकिन अब तक इन वीर सपूतों को दस्तावेजों में शहीद नहीं घोषित करा पाए।

आज भी देश भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है। लेकिन शायद लोगों को यह पता नहीं है कि हमारी सरकारों ने उन्‍हें दस्‍तावेजों में अब तक शहीद नहीं घोषित किया है।

भगत सिंह को जो अंग्रेज मानते थे। आजादी के बाद भी सरकारी रिकॉर्ड में वही स्‍थिति है। उनके वंशज शहीद का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।

वे सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर भगत सिंह को ‘शहीद’ घोषित करने में सरकार को परेशानी क्‍या है? क्‍या सरकार को कोई डर है? शहीद भगत सिंह ब्रिगेट के प्रमुख एवं भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू कहते हैं ‘आजादी के बाद सभी सरकारों ने सिर्फ नरम दल वालों को सम्‍मान दिया, जबकि गरम दल वाले क्रांतिकारी हाशिए पर रहे।’

संधू के मुताबिक ‘वह इस मामले को लेकर भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से मिल चुके हैं।

दिल्ली यूनिविर्सटी में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाई जा रही ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ नामक पुस्तक में शहीद भगत सिंह को जगह-जगह क्रांतिकारी आतंकवादी कहा गया था। यदि वे दस्‍तावेजों में शहीद घोषित होते तो ऐसा लिखने की हिम्‍मत किसी की न होती।’

संवाददाता ने इस बारे में गृह राज्‍य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर से भगत सिंह के वंशज के साथ तीन बार मुलाकात की। हर बार उन्‍होंने कहा कि भगत सिंह को दस्‍तावेजों में शहीद घोषित करवाने को लेकर वह संस्‍कृति मंत्रालय से बातचीत कर रहे हैं। वह हर हाल में यह सरकारी गलती सुधरवाएंगे।’

इस समय उप राष्ट्रपति के पद पर आसीन वैंकया नायडू ने तब बीजेपी नेता के रूप में कहा था। ‘सरकार को इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। वह यह देखे कि भगत सिंह का नाम शहीदों की सूची में सम्‍मलित किया जाए। वे जिस सम्‍मान और महत्‍व के हकदार हैं उन्‍हें प्रदान किया जाए। क्‍योंकि वे स्‍वतंत्रता सेनानियों के नायक थे। देश के युवा उनसे प्रेरित होते हैं।’

सदन में तत्‍कालीन संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा था ‘सरकार उन्हें बाकायदा शहीद मानती है और अगर सरकारी रिकार्ड में ऐसा नहीं है तो इसे सुधारा जाएगा। सरकार पूरी तरह से उन्‍हें शहीद मानती है और शहीद का दर्जा देती है। लेकिन ताज्‍जुब यह है अब तक सरकार ने इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया है।’

अब केंद्र में भाजपा सरकार है। उन्‍हीं सवालों की आरटीआई प्रधानमंत्री कार्यालय में डाली गई। अक्‍टूबर 2016 में जवाब फिर वही आया है। पीएमओ ने आरटीआई गृह मंत्रालय को रेफर कर दी। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस बारे में उसके पास कोई रिकार्ड नहीं है।

अलीगढ़ मुस्‍लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर अली अख्‍तर का कहना है कि ‘देश का बच्‍चा-बच्‍चा जानता है कि भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान दे दी, फिर सरकार को शहीद घोषित करने में क्‍या दिक्‍कत हो सकती है।

दरअसल सरकार को भगत सिंह से कोई सियासी फायदा नहीं होता इसलिए वह इस बारे में जज्‍बा भी नहीं दिखाती। यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है। 

अख्‍तर कहते हैं कि ‘सरकार जब चाहे तब भगत सिंह को दस्‍तावेजों में शहीद घोषित कर सकती है। इसमें कोई तकनीकी दिक्‍कत नहीं है। भगत सिंह अंग्रेजों के लिए क्रांतिकारी आतंकी थे, हमारे लिए वह शहीद हैं लेकिन यह दुखद है कि हमारे देश के इतिहासकारों ने उनके साथ न्‍याय नहीं किया।’

आमतौर पर फांसी सुबह दी जाती है। लेकिन अंग्रेजों ने भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में शाम को फांसी दे दी थी। तारीख थी 1931 की 23 मार्च, शाम करीब साढ़े सात बजे का था। ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह के साथ उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरू को भी फांसी दी थी।

भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू कहते हैं कि फांसी 24 मार्च 1931 की सुबह दी जानी थी। लेकिन ब्रिटिश सरकार डर गई क्‍योंकि लोग एकत्र होने शुरू हो गए थे। संधू कहते हैं कि भगत सिंह ने सिर्फ 23 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान दे दी। अब आजादी मिलने के बाद उन्‍हें शहीद घोषित करने से भी सरकारें परहेज कर रही हैं।

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