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अवैध निर्माण पर चलने वाले बुलडोज़र का दंगों की कार्रवाई से वास्ता नहीं: यूपी सरकार

अशाेक यादव, लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि मौजूदा समय में प्रदेश में अवैध निर्माण को गिराने के लिए की जा रही बुलडोजर की कार्रवाई का दंगों से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह दावा राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट में दाखिल एक जवाब में किया गया है। सरकार का कहना है की उसकी इस कार्रवाई को गलत स्वरुप में प्रस्तुत करने का काम किया जा रहा है।

यूपी सरकार की तरफ से कहा गया है कि जिन अवैध निर्माण पर बुलडोजर चला है उसे हटाने का नोटिस कई महीने पहले ही दिया जा चुका था। गौरतलब है कि यूपी में कई सम्पत्तियों का उल्लेख करते हुए उसे गिराने की कार्रवाई को गलत बताते हुए जमीयत उलेमा ए हिंद ने अपनी याचिका दायर की थी। जिसके ऊपर यूपी सरकार ने अपना जवाब दिया है।

मिली जानकारी के अनुसार राज्य के गृह विभाग के विशेष सचिव राकेश कुमार मालपानी की तरफ से दाखिल हलफनामे में बताया गया है कि जिन संपत्तियों का उल्लेख जमीयत उलेमा ए हिंद ने अपनी याचिका में किया है उन्हें हटाने की कार्रवाई लंबे समय से कानपुर और प्रयागराज प्राधिकरण कर रहे थे।

सरकार के हलफनामे के मुताबिक कानपुर के बेनाझाबर इलाके में इश्तियाक अहमद को 17 अगस्त 2020 को पहली बार अवैध निर्माण के लिए नोटिस जारी हुआ था। लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया के बाद मकान को सील किया गया, लेकिन उस सील को इश्तियाक की तरफ से तोड़ दिया गया। जिसके बाद सरकार की तरफ से कानूनी प्रावधानों का पालन करने के बाद 19 अप्रैल 2022 को प्राधिकरण ने उस निर्माण को ढहाने का आदेश जारी किया गया। प्रशासन की तरफ से अवैध निर्माण को खुद हटा लेने के लिए 15 दिन का समय भी दिया गया। जिसके बाद बीते 11 जून को प्राधिकरण ने निर्माण को गिरा दिया।

एक और केस में कानपुर के सिंहपुर ज़ोन-1 में निर्माणाधीन रियाज़ अहमद के पेट्रोल पंप के बारे में बताया गया है कि बिना अनुमति के चल रहे इस निर्माण को रोकने का नोटिस 18 फरवरी को जारी हुआ था। जिसके बाद उनकी तरफ से कोई सहयोग न मिलने की दशा में 20 अप्रैल को इस निर्माण को गिराने का आदेश जारी हुआ और 11 जून को प्राधिकरण ने यह कार्रवाई की। हलफनामे के मुताबिक 17 जून को रियाज़ अहमद ने खुद आवेदन देकर स्वीकार किया है कि निर्माण अवैध था।

प्रयागराज में जावेद मोहम्मद के मकान पर 12 जून को हुई कार्रवाई के बारे में बताया गया है कि मई की शुरुआत में जेके आशियाना कॉलोनी के निवासियों ने इस अवैध निर्माण की शिकायत की। उन्होंने बताया कि 2 मंजिला मकान का निर्माण अनियमित तरीके से हुआ है, बल्कि वहां एक राजनीतिक दल का कार्यालय भी चलाया जा रहा है, जो कि आवासीय इलाके में नहीं किया जा सकता। 10 मई को जावेद मोहम्मद को नोटिस जारी हुआ। इसके जवाब में दूसरी तरफ से न तो प्राधिकरण से कोई सहयोग नहीं किया गया और न ही व्यक्तिगत रूप से किसी ने सामने उपस्थित होकर अपनी बात कही। जिसके बाद 25 मई को निर्माण को गिराने का आदेश जारी हो गया।

कानून के दायरे में हो रही कार्रवाई

अपने हलफनामे में यूपी सरकार ने बताया है कि यह पूरी कार्रवाई उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 में तय प्रक्रिया के अनुसार हुई है। लेकिन जमीयत इसे दुर्भावना का रंग देने की कोशिश कर रहा है। अगर दंगे में शामिल होने के लिए कानूनी कार्रवाई का सवाल है तो इसे सीआरपीसी, गैंगस्टर एक्ट, प्रिवेंशन ऑफ पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट के तहत किया जा रहा है। अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई को दंगे से नहीं जोड़ा जा सकता। जिन लोगों के निर्माण गिराए गए हैं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह नहीं कहा है कि उन्हें नोटिस नहीं मिला था। बल्कि जमीयत नाम का संगठन मीडिया में छपी हुई बातों के आधार पर इस तरह का दावा कर रहा है इस याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार, 24 जून को मामले की सुनवाई करेगा।

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