
वक़्फ़ एक्ट में दो तरह की संपत्ति का ज़िक्र है. पहला वक़्फ़ अल्लाह के नाम पर होता है यानी ऐसी मिल्कियत (संपत्ति) जिसे अल्लाह को समर्पित कर दिया गया है और जिसका कोई वारिसाना हक़ बाक़ी न बचा हो.
दूसरा वक़्फ़ अलल औलाद है यानी ऐसी वक़्फ़ संपत्ति जिसकी देख-रेख वारिस करेंगे.
इस दूसरे प्रकार के वक़्फ़ के बारे में नए बिल में प्रावधान किया गया है. इसमें महिलाओं के विरासत का अधिकार ख़त्म नहीं होना चाहिए.
ऐसी दान की हुई संपत्ति एक बार वक़्फ़ के खाते में आ गई, तो ज़िले का कलेक्टर उसे विधवा महिलाओं या बिना माँ-बाप के बच्चों के कल्याण में इस्तेमाल कर सकेगा.
वक़्फ़ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है, जिसे कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम को मानता है, अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मक़सद या परोपकार के मक़सद से दान करता है.
ये संपत्ति भलाई के मक़सद से समाज की हो जाती है और अल्लाह के सिवा कोई उसका मालिक नहीं होता और ना हो सकता है.
वक़्फ़ वेलफ़ेयर फ़ोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं, “वक़्फ़ एक अरबी शब्द है जिसका मायने होता है ठहरना. जब कोई संपत्ति अल्लाह के नाम से वक़्फ़ कर दी जाती है, तो वो हमेशा-हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर हो जाती है. फिर उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है.”
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी जनवरी 1998 में दिए अपने एक फ़ैसले में कहा था कि ‘एक बार जो संपत्ति वक़्फ़ हो जाती है, वो हमेशा वक़्फ़ ही रहती है.’
वक़्फ़ संपत्ति की ख़रीद फ़रोख़्त नहीं की जा सकती है और ना ही इन्हें किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है.
हालांकि लोकसभा में कांग्रेस, एसपी, टीएमसी समेत इंडिया गठबंधन के दलों ने इस बिल का विरोध किया. वहीं बीजेपी के सहयोगी दलों जेडीयू और टीडीपी ने इस बिल का समर्थन किया.