मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी होती है। उत्पन्ना एकादशी को वैतरणी एकादशी या उत्पतिका एकादशी भी कहा जाता हैं। इस बार 3 दिसम्बर 2018 सोमवार को उत्पन्ना एकादशी व्रत है। जिसमें विष्णु भगवान और एकादशी माता की पूजा की जाती है।
एकादशी के दिन विष्णु पूजा से करोड़ों गुणा फल प्राप्ति होती है। व्रतों में श्रेष्ठ एकादशी एक देवी हैं, आपको बता दें कि ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन ही उत्पन्ना एकादशी प्रकट हुई थीं। उनका जन्म विष्णु के द्वारा माना जाता है। इसलिए ही इस एकादशी को उत्पन्ना कहा गया।
उत्पन्ना एकादशी महत्व:
उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु से पैदा हुई एकादशी की कथा सुनाई जाती है। उत्पन्ना एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ में एकादशी माता के आरती और मंत्रों का जाप किया जाता है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को एकादशी प्रकट हुई थी। इसलिए इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा है। बस फिर इसी दिन से एकादशी व्रत शुरू हो गया।इस एकादशी का विशेष महत्व है जिसके कारण यह हिंदू धर्म में विशेष तौर पर की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थ स्नान आदि फल प्राप्त होते हैं।उत्पन्ना एकादशी पर किए गए व्रत-उपवास से तन-मन निर्मल होता है। इस व्रत से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी व्रत में दशमी तिथि से प्रारंभ हो जाता है, जबकि इसका उपवास दशमी की रात्रि से आरंभ होता है। उत्पन्ना एकादशी की दशमी तिथि को शाम के समय भोजन करना चाहिए फिर रात्रि में भोजन न करने का विधान है। इसके लिए रात्रि में व्रत उपवास करें। साथ ही इस एकादशी पर साफ-सफाई का विशेष महत्व है। साथ ही व्रती को बुरी संगत से दूर रहना चाहिए तभी उसे मोक्ष प्राप्त होती है।
उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि:
एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें। इसके लिए शुद्ध जल से स्नान करना आवश्यक है। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को किए गए रात्रि भोजन के बाद अच्छी तरह से दातौन करें। एकादशी व्रत में मुख की संपूर्ण स्वच्छता अनिवार्य है।दातौन के पश्चात व्यक्ति के मुंह में अन्न का अंश नहीं रहना चाहिए। इसके बाद रात्रि में बिल्कुल भोजन न करें, फिर अगले दिन उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें। उत्पन्ना एकादशी व्रत में भगवान विष्णु और देवी एकादशी की विधिवत पूजा करें।इसके बाद भगवान विष्णु की संपूर्ण सामग्री से पूजा करें, व्रती व्यक्ति इस दिन तम मन से पूरा दिन भजन-कीर्तन में ही बिताए। संध्या में दीपदान करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद अगले दिन सुबह भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।उत्पन्ना एकादशी व्रत में विशेष तौर पर इस बात का ध्यान रखें कि व्रत करने वाले जातक को किसी बुरी संगत के संपर्क में नहीं जाना है। वह क्लेश, अपशब्द बोलेने वाले, शराबी और किसी की निंदा करने से दूर ही रहें, इस दिन जातक सात्विक जीवन जिएं।व्रती अपने पापों के लिए भगवान विष्णु से क्षमायाचना करें। फिर अगली सुबह पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराकर व्रत समापन करना चाहिए। भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमतानुसार दान दे दें।
Utpanna Ekadashi Vrat 2018 : उत्पन्ना एकादशी व्रत महत्व, जाने क्या है पूजा विधि
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