लखनऊ : बात 1958 की है…फर्रुखाबाद की जिला अदालत में अपनी कुर्सी पर एक जूनियर जज बैठा था. जेहन में भविष्य की उधेड़बुन चल रही थी. एक तरफ जज जैसी सरकारी नौकरी का आकर्षण था, दूसरी तरफ जनसेवा करने की तीव्र इच्छा. युवा बीएचयू में पढ़ाई के दौरान छात्रसंघ का सचिव …
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