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RTI संशोधन विधेयक 2019 के जरिये आयोगों को बंधक बनाकर एक्ट को समाप्त करने की साजिश कर रही मोदी सरकार: उर्वशी शर्मा

लखनऊ। भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा बीते कल लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 पेश करने के बाद यूपी के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सूबे की नामचीन आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा की अगुआई में लामबंद होकर मोदी सरकार के खिलाफ विरोध का बिगुल बजा दिया है, बताते चलें कि इस विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों व राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। उर्वशी की अगुआई में इकट्ठे हुए एक्टिविस्टों का कहना है कि इस विधेयक को लाने से पारदर्शिता के सवाल पर वर्तमान केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता पर सवालिया निशान लग गया है ।

एक्टिविस्टों ने मोदी सरकार पर न्यूनतम पारदर्शिता और अधिकतम सरकार के सिद्धांत के आधार पर काम करने का आरोप भी लगाया है, एक्टिविस्टों की अगुआई कर रही समाजसेविका उर्वशी शर्मा ने बताया कि उन्होंने भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजकर अवगत कराया है कि यदि यह विधेयक कानून बन गया तो आरटीआई अधिनियम का संस्थागत स्वरूप नष्ट हो जाएगा स बकौल उर्वशी सरकार का यह प्रयास है कि सूचनाआयोगों का अपना बंधक बनाकर इनकी स्वायत्तता समाप्त की जाए और आरटीआई एक्ट की व्यवस्थाओं को अव्यवस्थित करके ऐसे हालात बना दिए जाएँ कि सूचना का अधिकार देश के नागरिकों को कोई परिणाम न दे सके स उर्वशी के अनुसार इस विधेयक के कानून बन जाने से आरटीआई का ढांचा सम्पूर्ण रूप से कमजोर होगा।

यह विधेयक सूचना आयोगों की स्वतंत्रता को समाप्त करके सूचना आयुक्तों को अपने इशारों पर नचाने के प्रशासनिक उद्देश्य से लाया गया है। एक विशेष बातचीत में लखनऊ निवासी एक्टिविस्ट उर्वशी ने बताया कि अब तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति 5 साल के लिए होती है लेकिन यदि यह विधेयक कानून बन जाता है तो केन्द्रीय और राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 साल होगा या कितना होगा इसका फैसला केंद्र सरकार करेगी, पहले मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की सेवा की शर्तें चुनाव आयुक्तों के समान होती थीं लेकिन अब शर्तें बदली जाएंगी, केंद्र सरकार सूचना आयोगों की स्वायत्ता और स्वतंत्रता को समाप्त करके इस संवैधानिक संस्था को कानूनी संस्था बनाने जा रही है।

जो सही नहीं है, मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है। उर्वशी ने बताया कि इससे पहले साल 2018 में भी केंद्र सरकार सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और अन्य भत्तों को नियंत्रित करने के लिए बिल लाई थी लेकिन उन जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुखर विरोध के बाद आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इसे इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था लेकिन अब प्रस्तावित संशोधन विधेयक 2019 के जिन्न को फिर से जिन्दा करके मोदी सरकार शक्तियों को केन्द्र सरकार के पास केन्द्रित करने की साजिश कर रही है जिससे भारत का संघीय ढांचा कमजोर होगा, संशोधित विधेयक को आरटीआई कानून से प्रभावित होने वाले और जुड़े हुए लोगों के बीच विचार-विमर्श के लिए नहीं रखे जाने पर आपत्ति व्यक्त करते हुए।

विधेयक को लोक सभा के पटल पर इस प्रकार रखे जाने को केंद्र सरकार की पूर्व-विधान परामर्श नीति का उल्लंघनकारी होने की बात भी उर्वशी द्वारा भेजे गए ज्ञापन में लिखी गई है स उर्वशी के अनुसार प्रस्तावित संशोधन विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 से मिले चुनाव आयुक्तों के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है क्योंकि सरकार को कोई अधिकार नहीं है कि वह सूचना आयोगों को अन्य ट्रिब्यूनलों से अलग माने, उर्वशी ने बताया कि उन्होंने मांग की है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि यह विधेयक कानून न बनने पाए स उर्वशी ने बताया कि वे देश भर के आरटीआई एक्टिविस्टों के संपर्क में हैं और यदि केंद्र सरकार ने इस विधेयक पर अपने कदम जल्द ही बापस नहीं खींचे तो एक देशव्यापी जनांदोलन चलाकर मोदी सरकार के इस जनविरोधी कदम का चहुमुंखी पुरजोर विरोध किया जाएगा।

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