सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : उत्तर रेलवे ने दिल्ली मंडल ने 140 वर्ष पुरानी हस्त चालित क्रेन को सफलतापूर्वक ठीक करके भारतीय रेल की धरोहर के स्मृति चिन्ह में एक नयी जान फूंक दी है। एली और मैक्लेन इंजीनियर, ग्लास्गो स्कॉटलैंड द्वारा सन 1885 में निर्मित इस क्रेन को पहली बार अवध और रोहिलखण्ड रेलवे , जिसे सन 1925 में ईस्ट इंडिया रेलवे में शामिल कर दिया गया था, पर इस्तेमाल में लगाया था।
इस क्रेन की पुनः बहाली एक उल्लेखनीय उपलब्धि रही जिसे मात्र तीन दिन में पूरा किया गया। ये क्रेन शकूरबस्ती रेलवे स्टेशन के निकट बेहद ख़राब हालत में पड़ी थी। क्रेन के पहिये जमीन में दबे हुए थे और इसका बूम टूट कर मुड गया था। साथ ही इसके ज़रूरी कलपुर्जे भी नहीं थे। स्टीम लोकोमोटिव शेड रेवाड़ी ने इस क्रेन की मरम्मत कर इसे बहाल करने की चुनौती स्वीकार की और शकूरबस्ती स्थित कैरिज एवं वैगन स्टाफ की मदद ली। खो चुके कलपुर्जो को फिर से बनाया गया और बूम को ठीक किया गया और इसका मूल स्वरुप बहाल किया गया।
इस बीच इंजीनियरिंग विभाग ने शकूरबस्ती ईस्ट केबिन के निकट एक पेडस्टल बनाने के लिए रात भर काम किया। एक मोबाइल क्रेन की मदद से तैयार किये गए सामान को उठाकर पेडस्टल पर लगा दिया। इस क्रेन के रंग रोगन का काम एक दिन में ही पूरा कर लिया गया। इस प्रकार एक मृतप्राय धरोहर को जीवंत रूप दिया गया।
बहाल की गयी दस टन क्षमता वाली इस क्रेन का उद्धघाटन 16. 01 . 2025 को उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक अशोक कुमार वर्मा द्वारा एक कार्यक्रम में किया गया। मंडल रेल प्रबंधक सुखविंदर सिंह एवं अन्य गणमान्य द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में इंजीनियर एवं सहायक टीम के समर्पण एवं दक्षता को सराहा गया।
इस अवसर पर बोलते हुए उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक वर्मा ने कहा कि ये रेल की विरासत को संरक्षित रखने में हमारे कर्मचारियों की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।