ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। निर्जला एकादशी कब है 2019 में अगर आपको नहीं पता तो बता दें कि इस बार निर्जला एकादशी 2019 में 13 जून 2019 यानी मंगलवार को पड़ रही है। सभी एकादशियों की तरह निर्जला एकादशी पर भी भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती है। जो व्यक्ति इन सभी एकादशियों का व्रत नहीं रख सकता।
वह ज्येष्ठ मास में पड़ने वाली निर्जला एकादशी का व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat 2019) ही कर ले तो उसे समस्य एकादशियों के पुण्य फलों की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन क्या आप जान जानते हैं कि इस निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप यह नहीं जानते की क्यों पड़ा निर्जला एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी और क्यों किया पांडव पुत्र भीम ने यह व्रत तो आज हम आपको निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी से जुड़ी इस मान्याता के बारें में बताएगें । तो चलिए जानते हैं क्यों कहा जाता है निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी…
निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी से जुड़ी मान्यता
यह कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई है। सभी पांडव , उनकी माता कुंती और द्रौपदी एकादशी का व्रत रखते थे । लेकिन भीम अपनी भूख के कारण यह व्रत नही कर पाते थे। एक बार भीम व्याकुल होकर व्यास जी के पास गए वहां जाकर उन्होनें कहा कि गुरुवर भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं। लेकिन में अपनी शक्ति के अनुसार पूजा-पाठ ,दान आदि सब कर सकता हुं। इस पर व्यास जी कहते हैं कि हे भीमसेन ! यदि तुम स्वर्ग और नरक को मानते हो तो प्रत्येक मास में पड़ने वाली दोनों एकादशियों के दिन अन्न का त्याग कर दो। जिस पर भीम कहते है हे पितामह! मैं भूख सहन नहीं कर सकता । यदि पूरे साल में सिर्फ एक ही व्रत हो जिसे में रख सकूं तो आप मुझे इसके बारे में बताएं।
क्योंकी मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता । अत: आप मुझे किसी ऐसे व्रत के बारे में बतांए जो मुझे साल में एक बार ही करना पड़े और जिसके प्रताप से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है। व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और कांपकर कहने लगे कि अब क्या करूं? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हां वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूं।
अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए। व्यास जी भीमसेन को बताते हैं कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला एकदशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के व्रत स्नान और आचमन के अलावा जल ग्रहण करना वर्जित है। आचमन में भी छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए। इस दिन न तो भोजन ग्रहण किया जाता है और न ही जल अगले दिन द्वादशी को अन्न-जल ग्रहण करने का विधान है। इसलिए इस एकादशी के पुण्य फलों को अधिक महत्वता दी गई है। माना जाता है निर्जला एकादशी के दिन भीमसेन ने विधिवत पूजा और व्रत के नियमों का पालन किया तब ही से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।