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सावित्री बाई फुले के संघर्ष को ध्यान सेवा संस्थान ने किया याद

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : आज इंडियन कॉफी हाउस, हजरतगंज, लखनऊ में ध्यान सेवा संस्थान, लखनऊ द्वारा सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन विद्वान / प्रबुद्ध जनों के मध्य मनाया गया !
कार्यक्रम ध्यान सेवा संस्थान की एडवोकेट प्रियंका पाल सिंह एवं एडवोकेट अरुणा सिंह एवं परिणीता सिंह द्वारा आयोजित किया गया !
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में गिरधारी लाल यादव एडवोकेट उपस्थित रहे, कार्यक्रम की अध्यक्षता केके शुक्ला द्वारा की गई ! सभी वक्ताओं ने सावित्रीबाई फुले के संघर्ष के बारे में बताया कि सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थी, महिला सशक्तिकरण के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, वह महान समाज सुधारक और शिक्षक थीं, उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जमकर आवाज उठाई !

वक्ताओं ने बताया कि सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ था, आज का दिन उनके संघर्ष और महान कार्यों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देने का दिन है !
आज उनकी याद में सम्पूर्ण देश में कार्यक्रम होते हैं ! वक्ताओं ने बताया कि
आजादी से पहले खास तौर पर 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब थी, उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाता था, पति की मौत के बाद सती होना पड़ता था, महिलाओं के साथ काफी भेदभाव तथा समाज में विधवाओं का जीवन जीना बेहद मुश्किल था, दलित और निम्न वर्ग का शोषण होता था, उनके साथ छुआछूत का व्यवहार होता था !

ऐसे माहौल में एक दलित परिवार में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने न सिर्फ समाज से लड़कर खुद शिक्षा हासिल की बल्कि अन्य लड़कियों को भी पढ़ा कर शिक्षित बनाया !
सावित्रीबाई की शादी महज 9 वर्ष में हो गई थी उस समय उनके पति की उम्र भी मात्र 13 साल थी, संघर्ष से शुरुआती शिक्षा के बाद सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और वह शिक्षक बनी !

पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जो देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है ! ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके शिक्षा योगदान को सम्मानित किया !
सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए भी एक आश्रम खोला, यहां बेसहारा औरतों को पनाह दी जाती थी ! सावित्री बाई ने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र को गोद लिया जिसे उन्होंने यशवंत फुले नाम दिया !
पुणे में जब प्लेग फैला तो सावित्रीबाई खुद मरीजों की सेवा में जुट गई, वह खुद इस बीमारी की चपेट में आ गई और 1897 में उनका प्लेग बीमारी के कारण निधन हो गया !
लेकिन जाते जाते भारत की महिलाओं में सावित्री बाई शिक्षा की अलख जगा गई !

कार्यक्रम में उपस्थित सूरज यादव एडवोकेट, आदित्य विक्रम सिंह एडवोकेट, ओमकार सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, विकास शुक्ला, राजेश पाण्डेय, योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, वीरेन्द्र त्रिपाठी एडवोकेट, संदीप कुमार, संजय कुमार एडवोकेट, रंजीत यादव एडवोकेट, निश्चल कुमार, ओमप्रकाश तिवारी आदि ने अपने अपने विचारों से सावित्री बाई फुले जी को याद किया !

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