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Adultery पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, धारा 497 खत्म, शादी के बाहर के संबंध अपराध नहीं

लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने आज धारा 497 व्यभिचार की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया. कोर्ट ने कहा कि व्यवस्था में समानता एक सिद्धांत है. इसके तहत एक पति अपनी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने Adultery की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि एक व्यक्ति की अपनी प्रतिष्ठा होती है और यह एक एक आदर्श समाज के लिए जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल का अधिकार महिलाओं को भी है और उन्हें यह सोचने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता कि एक समाज क्या चाहता है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यही है कि उसमें ‘ मैं, मेरा और तुम ‘ सभी शामिल हैं. कोर्ट ने कहा है कि व्यभिचार यानी विवाह के बाद किसी दूसरे पुरुष से संबंध गलत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि अगर दो व्यक्ति विवाह नामक संस्था में रहते हुए भी आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो वह अपराध नहीं है. कोर्ट के फैसले के बाद शादी के बाहर के संबंधों पर कोई जेल नहीं जाएगा. इसके लिए तलाक की अर्जी दी जा सकती है.

क्या है धारा 497
संविधान की धारा 497 के अनुसार अबतक अगर कोई विवाहित महिला किसी दूसरे पुरूष से पति की अनुमति से संबंध बनाती है, तो महिला अपराधी नहीं होती, हालांकि संबंध बनाने वाला पुरुष व्यभिचार का दोषी होता है. धारा 497 की इसी व्यवस्था को चुनौती दी गयी थी और यह मांग की गयी थी कि महिला को भी दोषी माना जाये. व्यभिचार होना तभी माना जाएगा जब पति मुकदमा करेगा. अगर किसी महिला का पति विवाहेत्तर संबंध बनाता है तो मुकदमा पत्नी नहीं कर सकती. पति अगर विवाहेतर संबंध रखे, तो उसे कानून व्यभिचार नहीं मानता.

सरकार ने याचिका का विरोध किया था
सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट से इस याचिका को खारिज करने की मांग की थी. सरकार ने कहा था कि विवाह जैसी संस्था को बचाने के लिए ये धारा ज़रूरी है. सरकार ने बताया है कि IPC 497 में ज़रूरी बदलाव पर वो खुद विचार कर रही है. फिलहाल, मामला लॉ कमीशन के पास है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल न दे.

सुनवाई के दौरान उठा था सवाल- सिर्फ पुरुष को सजा क्यों?
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा था, “भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है. भारत में इस पवित्र बंधन के खिलाफ जाने वाले के लिए दंड का प्रावधान समाज को सामान्य लगता है. लेकिन हमें देखना होगा कि अगर महिला और पुरुष दोनों ने मिलकर कुछ किया हो, तो सिर्फ पुरुष को सज़ा देना क्या सही है.”

 

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