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तीसरी लहर का बच्चों पर होगा ज्यादा असर? WHO-AIIMS के सर्वे में राहत वाले नतीजे

अशाेक यादव, लखनऊ। कोरोना वायरस महामारी की संभावित तीसरी लहर में बच्चों के अधिक प्रभावित होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं। इस वजह से पैरेंट्स बच्चों को लेकर बेहद चिंतित हैं। लेकिन इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन और अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान के एक साझा सर्वे के मुताबिक, तीसरी लहर से बच्चों के अधिक प्रभावित होने की संभावना कम है।

पांच राज्यो में 10 हजार सैंपल साइज पर किए गए इस सर्वे में कहा गया है कि व्यस्कों की तरह में बच्चों में भी SARS-COV-2 सीरोपॉजिटिविटी रेट काफी अधिक है। इसका मतलब है कि बच्चों में भी कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबॉडी पाई गई है।

मिडटर्म एनालिसिस के लिए चार राज्यो के 4500 प्रतिभागियों के डेटा को परिणाम में शामिल किया गया है, जबकि फाइनल रिजल्ट अगले दो से तीन महीनों में आने की संभावना है। सर्वे की अगुआई कर रहे एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रफेसर डॉ. पुनीत मिश्रा ने कहा है कि दक्षिण दिल्ली के झुग्गियों बस्तियों में जहां आबादी बहुत सघन है, 74.7 फीसदी लोगों में सीरो की मौजूदगी है।  

दूसरी लहर के बाद भी दक्षिण दिल्ली में 18 साल से अधिक उम्र के लोगों में 73.9 फीसदी सीरो की मौजूदगी पाई गई है तो 18 साल से कम वालों में यह दर 74.8 फीसदी है। डॉ. मिश्रा ने कहा, ”बेहद तीव्र दूसरी लहर के बाद दिल्ली और एनसीआर (फरीदाबाद) में सीरोप्रिवलेंस अधिक हो सकती है। संभवत: इतने अधिक स्तर सीरो की मौजदूगी तीसरी लहर से बचाव कर सकता है।” 

सर्वे में कहा गया है, ”चूंकि दिल्ली के शहरी और सघन इलाकों में बच्चों में पहले ही सीरो की काफी मौजूदगी है, स्कूल खोलना बहुत जोखिम भरा नहीं होगा। दूसरी लहर के दौरान एनसीआर के फरीदाबाद इलाके में सीरो पॉजिटिविटी रेट 59य3 फीसदी थी। जोकि व्यस्कों और बच्चों में लगभग समान थी। गोरखपुर के ग्रामीण इलाकों में सीरो मौजूदगी की दर 87.9 फीसदी है। 2-18 साल के उम्र के बच्चों में यह दर 80.6 तो 18 साल से अधिक उम्र के लोगों में 90.3 फीसदी है। यह तीसरी लहर को रोकने में सक्षम हो सकता है। सर्वे कहता है कि ग्रामीण इलाकों में गोरखपुर सबसे अधिक प्रभावित है और इसका मतलब है कि यहां हर्ड इम्युनिटी हो सकती है। 

62.3 फीसदी ग्रामीण आबादी में संक्रमित हो चुकने के सबूत मिले हैं। अगरतल्ला ग्रामीण में सबसे कम 51.9 फीसदी सीरो की मौजूदगी मिली है। माना जा रहा है कि ऐसा आबादी इलाकों की वजह से हुआ है, क्योंकि इनका बाहरी दुनिया से संपर्क कम है और इसलिए कोरोना की पहुंच भी इन तक कम रही।

 
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