सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मुकदमों का बोझ बढ़ाने में कुछ हद तक वह स्वयं भी जिम्मेदार है। कोर्ट ने कहा कि जब हम किसी पक्ष को लिखित आश्वासन देने के लिए अनुमति देते हैं, तो ज्यादातर मामलों में इसके बाद अवमानना याचिका दाखिल की जाती है। इस तरह से हमारे सामने सैकड़ों अवमानना याचिकाएं लंबित हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि वास्तव में हम सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों को बढ़ा रहे हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ एक पर विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें मकान खाली करने के आदेश के खिलाफ संशोधन याचिका खारिज कर दी गई थी। फिर इस फैसले पर पुनर्विचार भी दायर की गई थी और याचिकाकर्ता-किरायेदार को खाली करने के लिए अतिरिक्त समय देने के विशेष आग्रह को स्वीकार कर लिया था। लेकिन इस मामलें में फिर से याचिका दायर कर खाली करने के लिए समय की मांग की गई थी।
पीठ ने कहा, कभी-कभी हम मकान खाली करने के लिए छह महीने या एक साल तक खाली करने का समय बढ़ाते हैं। लेकिन ये ऐसे मामले हैं जो निचली अदालतों में 15 साल और यहां तक कि दो दशकों तक लंबित हैं। क्या हमें इस समय का आगे विस्तार क्यों करना चाहिए। पीठ ने कहा कि जहां एक पक्ष अदालत के आदेश के अनुपालन में एक विशिष्ट अवधि में परिसर खाली करने की लिखित आश्वासन देता है।
वहीं दूसरा पक्ष, ज्यादातर मामलों में इसका उल्लंघन होने पर अदालत में फिर से अवमानना याचिका दायर करने के लिए मजबूर होता है। जस्टिस शाह ने इस बात से सहमति जाहिर की और कहा कि हम सर्वोच्च न्यायालय का बोझ बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। बाद में कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी।