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मजदूरों संग भेदभाव और परिवहन की मांग वाली याचिका पर नौ को फैसला

अशाेेेक यादव, लखनऊ। प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के मुद्दे पर दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय 9 जून को आदेश सुनाएगी। याचिकाओं में लॉकडाउन के रहने तक मजदूरों के परिवहन, अस्थाई आश्रय, भोजन और चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश केंद्र सरकार को देने की मांग की गई है। न्यायालय ने उक्त याचिकाओं को इसी समस्या पर स्वतः संज्ञान द्वारा दर्ज याचिका के साथ सूचीबद्ध किया है।

अधिवक्ता नचिकेता वाजपेयी की ओर से उक्त याचिका को सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड दीपक प्रकाश ने दाखिल किया है। उक्त याचिका और एक अन्य याचिका पर शुक्रवार को न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमआर शाह की बेंच ने सुनवाई की। याचिकाओं में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के साथ-साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी प्रतिवादी बनाया गया है।

याचिकाओं में कहा गया है कि मजदूरों का परिवहन व्यवस्थित तरीके से नहीं हो पा रहा है। प्रवासी मजदूरों को वायरस कैरियर के तौर पर माना जा रहा है जिसकी वजह से उनके साथ भेदभाव हो रहा है। देश की सड़कों पर हजारों मजदूर बिना खाना-पानी के हजारों किलोमीटर के सफर पर पैदल ही निकल चुके हैं, जिनकी पहचान स्थानीय प्रशासकीय अधिकारियों द्वारा आसानी से की जा सकती है लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम आदेश इस समस्या के समाधान के लिए नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।

इन मुद्दों को उठाते हुए मांग की गई है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 31 मार्च 2020 को जारी किये गए निर्देशों का पालन किए जाने के दिशा-निर्देश दिए जाएं, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि मजदूरों की परेशानियों को पुलिस व अन्य प्रशासनिक अधिकारी समझें, उनसे मानवीय व्यवहार किया जाए। प्रवासियों की सहायता के लिए पुलिस के साथ-साथ स्वयंसेवियों की भी सहायता ली जाए।

याचिका में आगे मांग की गई है कि देश भर के असहाय और बेसहारा मजदूरों को चिन्हित कर उनकी सूची बनाई जाए। उन्हें उनके शहरों और गांवों में पहुंचाने के लिए परिवहन की व्यवस्था सामाजिक दूरी का पालन करते हुए की जाए। उनके अस्थाई आश्रय, भोजन व चिकित्सीय सुविधाओं की व्यवस्था तत्काल की जाए।

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