लखनऊ : उर्दू और हिन्दी का रिश्ता को लेकर प्रेस क्लब लखनऊ में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस दौरान बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए तीन पत्रकारों को सम्मानित भी किया गया।
आजाद एजुकेशनल एवं वेलफेयर ट्रस्ट की ओर से हो रहे इस सेमिनार का उद्घाटन हिन्दी साहित्य संस्थान के अध्यक्ष रहे उदय प्रताप सिंह ने किया। इसकी अध्यक्षता संस्था की अध्यक्ष प्रो. आसिफा जमानी ने किया। कार्यक्रम की उदय प्रताप ने सराहना करते हुए कई प्रसंग सुनाए। इस दौरान उन्होंने कहा कि हिन्दी और उर्दू हमेशा साथ रही है। दोनों में कोई अंतर नहीं है। इन भाषा का किसी धर्म या मजहब से कोई संबंध नहीं होता है। दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा चाइनीज है, लेकिन हिन्दी और उर्दू को मिला दें तो यह राष्ट्रीय भाषा बन सकती है। यह सबसे अधिक बोली जाती है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा कि …
हिन्दी उर्दू साथ रही आजादी के कुर्बानी में…
अशफाक उल्ला भगत सिंह ने जोड़े पृष्ठ कहानी में…
वतन शमा के परवानें जलते थे भरी जवानी में…
तब अंग्रेज गया भारत से आग लगाकर पानी में…
इसमें वतन शमा के परवानें को हिन्दी में नहीं लाया जा सकता और आग लगाकर पानी में को उर्दू नहीं बनाया जा सकता। उदय प्रताप सिंह ने आगे कहा कि बहुभाषी होने से अभिव्यक्ति का दायरा बढ़ जाता है। ऐसे में उर्दू और हिन्दी का रिश्ता नहीं ये दोनों भाषाएं सगी बहनें हैं।
कार्यक्रमें में वरिष्ठ पत्रकार प्रेमकांत तिवारी समेत सैकड़ों शिक्षाविद, समाजसेवी और चुनाव आयोग के पूर्व ओएसडी अतीक अहमद, डाक्टर उमैर मंजर मौजूद रहे।
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