नई दिल्ली: मोदी सरकार के वित्त वर्ष 2018-19 में 70,000 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज (बैड लोन) की वसूली की गई है. यह वसूली इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्शी कोड (दिवाला एवं ऋण शोधन क्षमता संहिता-IBC) के जरिये की गई है. यह अन्य नियमों के तहत फंसे कर्जों की कुल वसूली की तुलना में दोगुना है. आईबीसी के तहत फंसे कर्जों के समाधान में लगने वाला समय अब भी एक मसला बना हुआ है. घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है. रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में आईबीसी के जरिये फंसे कर्जों की वसूली अन्य माध्यमों के मुकाबले हुई वसूली से दोगुनी करीब 70,000 करोड़ रुपये रही.
इसी दौरान डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल (DRT), सिक्यूरिटाइजेशन ऐंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स ऋण तथा लोक अदालत जैसे अन्य उपायों के जरिये फंसे कर्जों की वसूली 35,000 करोड़ रुपये रही. क्रिसिल के अध्यक्ष गुरप्रीत चटवाल के अनुसार आईबीसी के जरिये 2018-19 में 94 मामलों में समाधान की दर 43 प्रतिशत रही. वहीं पूर्व की समाधान योजनाओं में इसका प्रतिशत 26.5 रहा. इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्शी बोर्ड (आईबीबीआई) की वेबसाइट पर उपलब्ध रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 2.02 लाख करोड़ रुपये के कर्ज से जुड़े मामलों को आईबीसी प्रक्रिया में जाने से पहले ही निपटान कर दिया गया. यह कर्ज 4,452 मामलों से जुड़ा था. रेटिंग क्रिसिल ने कहा, ‘बैंकों में नई गैर-निष्पादित परिसपंत्ति (एनपीए) में वृद्धि की दर का धीमा हुआ है.
हमारा अनुमान है कि बैंकों का सकल एनपीए मार्च 2019 तक घटकर करीब 10 प्रतिशत पर आ गया है जो एक साल पहले इसी समय में 11.5 प्रतिशत था.’ क्रिसिल ने यह भी कहा कि आईबीसी के तहत समाधान की समयसीमा अब भी एक मुद्दा है. रिपोर्ट के अनुसार, आईबीसी के जरिये मामलों के समाधान में लगने वाला औसत समय 324 दिन है जो पहले 4.3 साल था. पर अभी भी संहिता के लिए निर्धारित 270 दिन से यह अधिक है. 31 मार्च, 2019 तक आईबीसी के सामने 1,143 मामले लंबित थे. इनमें से 32 फीसदी मामले ऐसे थे जो 270 दिन से ज्यादा समय से लंबित हैं. कई ऐसे बड़े मामले हैं जिनमें 400 से ज्यादा दिन बीत जाने पर भी अभी कोई समाधान नहीं निकल पाया है. आईबीसी के तहत फंसे कर्जों के समाधान की प्रक्रिया तेज की जाती है. इसमें एसेट क्वालिटी पर बैंकों का नियंत्रण भी बना रहता है. प्रॉविजनिंग की शर्तों में बदलाव किया जाता है.