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2019 में सपा-बसपा में गठबंधन की तैयारी जोरों पर, दोनों पार्टियां 37-37 लोकसभा सीटों पर साथ मिलकर लड़ेंगे चुनाव

नई दिल्ली: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे मोदी सरकार के खिलाफ महागठबंधन की कवायदों का गुब्बार फूटने की खबर आने लगी है. लोकसभा चुनाव से पहले सपा-बसपा के बीच गठबंधन की अटकलों से बिहार की सियासत से अब यूपी की सियासत पर सबकी नजरें टिक गई हैं. सूत्रों की मानें तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस की महागठबंधन की कवायदों को झटका देने का मन बना लिया है और कांग्रेस को छोड़-छोड़ एक साथ साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं. सूत्रों से मिली जानकारी की मानें तो मायावती और अखिलेश यादव इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने के करीब पहुंच गए हैं और बस सिर्फ ऐलान की देरी है.

सूत्रों का दावा है कि उत्तर प्रदेश की ये दोनों बड़ी पार्टियां 37-37 लोकसभा सीटों पर साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी. बता देंकि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. यूपी की सियासी गलियाओं में चर्चा इस बात पर भी है कि बसपा-सपा गठबंधन में अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ दी जाएंगी और वहां किसी भी उम्मीदवार को नहीं उतारा जाएगा. इसके बाद जो सीटें बच रही हैं उससे राष्ट्रीय लोकदल और अन्य छोटी पार्टियों के लिए छोड़ा जायेगा. यानी सपा और बसपा के बीच गठबंधन की बात सही साबित होती है तो इसका मतलब है कि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी और यूपी की अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को जोड़ने की सपा-बसपा पूरजोर कोशिश करेगी. इस तरह से देखा जाए तो सपा-बसपा का संगम होता है तो कांग्रेस बड़ा झटका तो होगा. साथ ही साथ बीजेपी के लिए भी किसी बड़े झटके से कम नहीं होगी.

कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के लिए झटके की बात को समझने के लिए लोकसभा चुनाव 2014 के वोट शेयर पर गौर करने की जरूरत होगी. दरअसल, 2014 में भले ही बसपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी, मगर उसका वोट फीसदी सपा के करीब ही था.  2014 लोकसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसने 80 में से 71 सीटें जीत कर सबको चौंका दिया था. उस वक्त 71 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने रिकॉर्ड करीब 42 फीसदी वोट हासिल किए थे. वहीं, समाजवादी पार्टी के खाते में करीब 22 फीसदी वोटों के साथ 5 सीटें आई थीं. 2014 में मायावती की बसपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी, मगर उसके करीब 20 फीसदी वोट थे. वहीं, कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी की सीटें जीती थीं और उसने करीब 7 फीसदी वोट शेयर हासिल किए थे.

अब अगर 2014 में यूपी में सभी पार्टियों के वोट फीसदी पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि सपा-बसपा के साथ होने से यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. अगर सपा-बसपा साथ आती है तो यूपी में इन दोनों पार्टियों को ही सबसे ज्यादा फायदा होगा. इसकी वजह है कि अगर सपा-बसपा के वोट शेयर को मिला दिया जाए तो यह करीब 40 फीसदी के आस-पास बैठता है, जो 2014 के मुकाबले में बीजेपी के बराबर है. अब अगर इसी वोट शेयर से सीटों की जीत का अनुमान लगाया जाए तो हो सकता है कि 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का आधे से ज्यादा सीटों पर कब्जा हो जाए. इसके अलावा सपा-बसपा चाहेगी कि पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल जैसे- निषाद पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल) उसके साथ हो जाए. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिए 2019 की राह और भी मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि गठबंधन में ना शामिल किए जाने पर पिछले चुनाव में महज 7.5 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस के लिए मुश्किलें और बढ़ेंगी और केंद्र की सत्ता में वापसी के सपने बिखर सकते हैं.

हालांकि, सपा-बसपा के गठबंधन से किसी तरह के सियासी नुकसान से बीजेपी इनकार कर रही है. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या का कहना है कि सपा-बसपा गठबंधन करे या न करे, हमें नहीं लगता कि इससे हम पर कोई प्रभाव पड़ेगा. देश मोदी जी के साथ है और उन्हें एक बार फिर से लोग पीएम बनना देखना चाहते हैं. बता दें कि विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी को 39.6% वोट मिले तो सपा और बीएसपी को 22 फीसदी. दोनों के वोटों को मिला दें तो 44 फीसदी हो जाता है. कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी ही वोट मिले थे. वहीं, बात करें लोकसभा चुनाव 2014 की तो बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 42.6% वोट मिले थे. सपा को 22 फीसदी और बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिले थे. बहरहाल, ऐसी खबरें हैं कि 15 जनवरी के बाद सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जा सकता है.

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