लखनऊ-न्यूयॉर्क : फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने राफेल डील के विवाद पर सीधे जवाब देने से परहेज किया और कहा कि जब भारत और फ्रांस के बीच 36 विमानों के लिए लाखों डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर हुए थे, तब वो सत्ता में नहीं थे. संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान मैक्रों राफेल डील के मुद्दे पर पूछे गये सवाल का उत्तर देने से बचते दिखे.
इमैनुअल मैक्रों ने अपनी प्रतिक्रिया में सीधे आरोपों का खंडन नहीं किया. उन्होंने इस सवाल के जवाब में कहा, “मैं उस समय सत्ता में नहीं था, लेकिन मुझे पता है कि हमारे नियम बहुत स्पष्ट हैं और यह सरकार से सरकार की चर्चा है और यह अनुबंध व्यापक ढांचे का हिस्सा है, जो भारत और फ्रांस के बीच एक सैन्य और रक्षा गठबंधन है.” फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने आगे इस सवाल का विस्तार से जवाब देने के वजाय कहा, “मैं सिर्फ उस बात का उल्लेख करना चाहता हूं, जो कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था.” पिछले साल मई में इमैनुअल मैक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति चुने गए थे. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2016 में राफेल जेट डील की घोषणा की थी. उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद थे.
बीते दिनों फ्रांस के राष्ट्रपति के राफेल सौदे को लेकर आए बयान ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा था कि भारत सरकार ने ही रिलायंस के नाम का प्रस्ताव रखा था और उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं दिया गया था.फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के इस बयान के बाद भारत सरकार की ओर से भी तुरंत प्रतिक्रिया आई थी, जिसमें कहा गया था कि ओलांद के बयान की जांच की जा रही है और साथ में यह भी कहा गया है कि कारोबारी सौदे में सरकार का कोई रोल नहीं है.
बता दें कि राफेल डील को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के ख़ुलासे के बाद दसाल्ट एविएशन ने इस मामले पर बयान जारी किया था. दसाल्ट एविएशन ने कहा था कि यह दो सरकारों के बीच समझौता है. इसके अलावा ऑफ़सेट पार्टनर चुनने के लिए अलग समझौते का प्रावधान है. इसी के तहत दसाल्ट एविएशन ने रिलायंस ग्रुप से समझौता किया. समझौते के बाद डसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड कंपनी बनी. इस कंपनी ने फ़ॉल्कन, राफ़ेल के पार्ट्स बनाने के लिए नागपुर में प्लांट स्थापित किया गया.