काठमांडू : 25 दिसबंर को पुष्प कमल दाहाल प्रचंड तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे और मंगलवार को उन्हें बहुमत साबित करना था.
275 सदस्यों वाली नेपाल की प्रतिनिधि सभा में प्रचंड को बहुमत साबित करने के लिए 138 सदस्यों के समर्थन की ज़रूरत थी, लेकिन उन्हें 268 सांसदों ने समर्थन में वोट किया.
प्रतिनिधि सभा में कुल 270 सांसद मौजूद थे और इनमें से 268 ने प्रचंड के समर्थन में वोट किया. केवल दो सांसदों ने प्रचंड के ख़िलाफ़ वोट किया.
प्रचंड ने 2022 के नवंबर महीने में हुआ आम चुनाव नेपाली कांग्रेस के साथ लड़ा था. नेपाली कांग्रेस चुनाव में 89 सीटें जीत सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.
प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओवादी सेंटर) के महज़ 32 सांसद हैं. प्रचंड को केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का समर्थन मिला है. ओली की पार्टी के पास 78 सीटें हैं.
ऐसा माना जा रहा था कि नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ही प्रधानमंत्री रहेंगे, लेकिन प्रचंड ने ऐन मौक़े पर पाला बदल लिया.
प्रचंड चाहते थे कि नेपाली कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री बनाए, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई थी.
ओली और प्रचंड के हाथ मिलाने के बाद नेपाली कांग्रेस विपक्ष में हो गई थी. ऐसा माना जा रहा था कि नेपाली कांग्रेस 10 जनवरी को पुरज़ोर कोशिश करेगी कि प्रचंड संसद में बहुत हासिल न कर पाएं.
लेकिन हुआ ठीक उल्टा. नेपाली कांग्रेस के 89 सदस्यों ने भी प्रचंड के समर्थन में वोट कर दिया.
नेपाली कांग्रेस के इस रुख़ से नेपाल का लोकतंत्र फ़िलहाल पूरी तरह से विपक्ष विहीन हो गया है. लेकिन यह केवल विपक्ष विहीन होने का मामला नहीं है.
नेपाली कांग्रेस के प्रचंड को समर्थन करने से केपी शर्मा ओली भी असहज हो गए हैं. संसद में यह नज़ारा देख मंगलवार को ओली ने नेपाली कांग्रेस पर तंज़ किया और कहा कि देउबा ने जिस उम्मीद से समर्थन किया, उसमें निराशा ही हाथ लगेगी.
ओली ने प्रचंड पर भी शक़ किया कहीं खेल कुछ और तो नहीं हो रहा है.
नेपाली कांग्रेस के संयुक्त महासचिव महेंद्र यादव ने प्रचंड के समर्थन पर मीडिया से कहा कि पार्टी ने सर्वसम्मति से मंगलवार को फ़ैसला किया था कि विश्वासमत के समर्थन में वोट करेंगे, लेकिन सरकार में शामिल नहीं होंगे.
हालांकि प्रचंड को समर्थन करने पर नेपाली कांग्रेस बुरी तरह से बँटी हुई बताई जा रही है. सोमवार को प्रचंड नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा से मिलने उनके आवास पर गए थे और उन्होंने मंगलवार के विश्वासमत में समर्थन में वोट करने का आग्रह किया था.
नेपाली कांग्रेस को जब प्रचंड के समर्थन में ही वोट करना था तब गठबंधन क्यों टूटने दिया? इसके पीछे की रणनीति क्या है?
नेपाल के प्रतिष्ठित अख़बार कांतिपुर के संपादक उमेश चौहान को लगता है कि नेपाली कांग्रेस पहली ग़लती ठीक करने के चक्कर में दूसरी ग़लती कर बैठी है.
उमेश चौहान कहते हैं, ”नेपाली कांग्रेस शुरू में प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए अड़ी रही. इसका नतीजा यह हुआ कि प्रचंड ने ओली से हाथ मिला लिया. इसके बाद नेपाली कांग्रेस को लगा कि बड़ी पार्टी होने के बावजूद वह ख़ाली हाथ रह गई.
उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ कि प्रचंड को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए था. लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी. मुझे लगता है कि नेपाली कांग्रेस को अब विपक्ष की भूमिका में रहना चाहिए था लेकिन उसने लालच में प्रचंड को समर्थन कर दूसरी ग़लती कर दी है.”
उमेश चौहान कहते हैं, ”अभी राष्ट्रपति का चुनाव होना है. प्रतिनिधि सभा के स्पीकर का चुना जाना बाक़ी है. उपराष्ट्रपति भी चुने जाएंगे. नेपाली कांग्रेस के मन में यह लालच है कि कम से कम राष्ट्रपति और स्पीकर का पद मिल जाए. लेकिन यह आसान नहीं होगा.
नेपाल की सिविल सोसाइटी और आम लोगों में यही इम्प्रेशन गया है कि यहाँ की सारी पार्टियां सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती हैं. मुझे लगता है कि पूरे घटनाक्रम में प्रचंड भी संदिग्ध बनकर उभरे हैं. ओली के साथ एक ठोस रोडमैप बन चुका था. सत्ता में हिस्सेदारी का भी ब्लूप्रिंट तैयार था. ऐसे में उन्हें देउबा के पास समर्थन के लिए नहीं जाना चाहिए था.”
उमेश चौहान कहते हैं, ”अगर प्रचंड को लग रहा है कि उनके पास ओली और देउबा दोनों का समर्थन है तो वह मुग़ालते में हैं. मेरा मानना है कि उनके पास 268 सांसदों का समर्थन है भी और नहीं भी है. यहाँ कोई तीसरा खेल भी हो सकता है.
ओली और प्रचंड दोनों नेपाली कांग्रेस को सरकार में बनाने गठबंधन के लिए सबसे मुफ़ीद सहयोगी मानते हैं. प्रचंड की गुगली के जवाब में ओली और देउबा में सरकार बनाने के लिए बात चल सकती है. दोनों संपर्क में भी हैं. संभव है कि दोनों एक साथ प्रचंड से समर्थन वापस ले लें और प्रचंड को कुर्सी छोड़नी पड़े. मैं मानता हूँ कि प्रचंड 268 सांसदों के समर्थन पाकर भी बहुत दिनों तक सत्ता में नहीं रह पाएंगे.”
संसद में बहुमत हासिल करने के बाद प्रचंड ने मंगलवार को कहा, ”हमारी सरकार की प्रतिबद्धता सामाजिक न्याय, सुशासन और संपन्नता के प्रति है. एक प्रधानमंत्री के रूप में मैं सहमति, सहयोग, आपसी विश्वास और प्रतिशोध रहित मंशा से काम करूंगा. राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति में राष्ट्रीय सहमति का कोई विकल्प नहीं है.”