अशाेक यादव, लखनऊ। गंगा एक्सप्रेसवे प्रदेश के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में मील का पत्थर साबित होने वाला है। पूर्वी यूपी से पश्चिमी यूपी को एक सूत्र में पिरोने वाला गंगा एक्सप्रेसवे सीधे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से जुड़ेगा।
गंभीर बात यह है कि गंगा एक्सप्रेस वे के लिए जब भूमि खरीदी जा रही थी, उस समय पूरे देश में कोरोना की लहर पीक पर थी। इसके बावजूद महज एक साल में गंगा एक्सप्रेसवे के लिए 83 हजार किसानों से 94 फीसदी भूमि खरीदी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 दिसंबर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना का शिलान्यास करने वाले हैं।
राज्य सरकार ने 36,230 करोड़ रुपए की लागत से 594 किमी लंबे गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना की स्वीकृति पिछले साल 26 नवंबर को दी थी। परियोजना के लिए करीब 7386 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है, जिसमें पिछले चार माह में 71,621 किसानों से 90 फीसदी से अधिक भूमि खरीदी गई है। अब तक कुल 82,750 किसानों से 94 फीसदी भूमि की खरीद हुई है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए एक्सप्रेसवे के किनारे करीब 18.55 लाख पौधे लगाए जाएंगे। साथ ही परियोजना में अधिग्रहित भूमि पर सोलर पावर के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन होगा, जिससे परियोजना के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति होगी। गंगा एक्सप्रेसवे पश्चिमी यूपी के विकास की नई इबारत लिखेगा। आधे से ज्यादा एक्सप्रेसवे पश्चिम के मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अमरोहा, संभल, बदायूं, शाहजहांपुर जिले से गुजर रहा है। हापुड़ और बुलंदशहर सहित अन्य जिलों के लोगों के आवागमन के लिए गढ़मुक्तेश्वर में एक अन्य पुल बनाया जाएगा।
गंगा एक्सप्रेसवे से सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ कृषि, वाणिज्य, पर्यटन और उद्योगों की आय को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा विभिन्न उत्पादन ईकाईयों, विकास केंद्रों और कृषि उत्पादन क्षेत्रों को राष्ट्रीय राजधानी से जोड़ने के लिए एक औद्योगिक कॉरिडोर के रूप में सहायक होगा। एक्सप्रेसवे खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों, भंडार गृह, मंडी और दुग्ध आधारित उद्योगों की स्थापना के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा।