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विश्व पर्यावरण दिवस 2018: पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें और बियर कैन जैसी चीजें वातावरण पर प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा

लखनऊ : हिमालय की पीर पंजाल पर्वतमाला के ठंडे, ऊबड़-खाबड़ और चट्टानी पहाड़ियों से कचरे का निस्तारण एक कठिन कार्य बनता जा रहा है. यही पीर पंचाल पर्वतमाला उत्तर भारत की प्रमुख नदी ब्यास और इसकी सहायक नदियों का उद्गम स्थली है. आलू के चिप्स के पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें और बियर कैन जैसी प्लास्टिक की चीजें रोहतंग पास के अत्यधिक नाजुक वातावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं. पर्यटक शहर से दो घंटे की दूरी पर स्थित रोहतांग दर्रा के वातावरण पर प्लास्टिक प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है. दर्रा का पूरा क्षेत्र, जहां ज्यादातर लोग 13,050 फीट की ऊंचाई पर यहां से दिखने वाले शानदार नजारों का आनंद लेने आते हैं, लगभग मानव निवास से वंचित है.  भारी बर्फबारी के दौरान यह इलाका हर साल देश के बाकी हिस्सों से पांच महीने से अधिक समय के लिए कट जाता है.

नदी-नालों में बहने लगा है पर्यटकों द्वारा फेंका गया कचरा
नई दिल्ली से आईं एक पर्यटक रौनक बाजवा ने कहा, “यहां बहने वाली छोटी-छोटी नहरों और नालों में प्लास्टि की बोतलों, डिब्बों और पैकटों को बहते हुए देखना चौंकाने वाला है. उन्होंने कहा, “स्थानीय प्रशासन इन नॉन-बायोडिग्रेडेबल (विघटित न होने वाले) वस्तुओं को ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में लाने पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रहा है.”

उनके दोस्त दिलवार खान जानना चाहते थे कि क्यों सरकार हिमालय को कूड़े-करकट से मुक्त नहीं कर रही है. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि रोहतांग पहाड़ियां तेजी से दुनिया की सबसे ज्यादा कचरा फेंके जाने का स्थान बनती जा रही हैं. यहां जगह-जगह छोड़े गए कपड़े, खाने के पैकेट और बियर कैन और प्लास्टिक की बोतलों के ढेर देखे जा सकते हैं.”सुरम्य रोहतंग दर्रा घरेलू और विदेशी पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है. राज्य के पर्यटन विभाग के अनुसार, मनाली के आसपास के पर्यटक स्थलों में सालाना 11 लाख पर्यटक आते हैं और पर्यटन स्थानीय लोगों के लिए आय का मुख्य स्रोत है. मनाली और रोहतांग दर्रे के बीच पड़ने वाले माढ़ी में खाने का सामान बेचने वाले दुकानदार लालचंद थाकुर ने कहा, “साल में एक बार पहाड़ियों की सफाई करना समाधान नहीं है. स्थानीय प्रशासन को अपशिष्ट प्रबंधन का स्थायी तरीका निकालना चाहिए.”

उन्होंने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा रोहतंग दर्रे में पर्यटक वाहनों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के साथ पर्यटकों का प्रवाह काफी कम हो गया है. केवल 1,200 टैक्सियां और निजी वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति है जिसमें 800 पेट्रोल और बाकी डीजल वाहन शामिल हैं. इन्हें रोहतांग दर्रे की यात्रा के लिए ऑनलाइन अनुमति मिलती है.

ठाकुर (80) ने कहा, एनजीटी को रोहतंग के रास्ते पर पड़ने वाले गुलाबा के आगे से कूड़े-करकट फैलाने पर कठोर दंड लगाना चाहिए. स्थानीय प्रशासन ने जगह-जगह अपशिष्ट निपटान सुविधाएं स्थापित की हैं मगर पर्यटक उन्हें अनदेखा कर देते हैं. एनजीटी के अध्यक्ष न्यायधीश स्वतंतर कुमार ने पिछले साल अपनी सेवानिवृत्ति से पहले बताया था कि वैज्ञानिक अध्ययनों ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि रोहतंग दर्रे के ग्लेशियर प्रति वर्ष एक मीटर की दर से घट रहे हैं.

उन्होंने कहा था, “यहां पिकनिक मनाने आने वाले पर्यटक पॉपकॉर्न, कोक और बियर की बोतले यहीं छोड़कर चले जाते हैं. यहां प्लास्टिक कूढ़ा और मानव अपशिष्ट गंदगी फैला रहा है और यहां की जमीन और पानी को प्रदूषित कर रहा है.” पर्यावरणविदों का कहना है कि राज्य को रोहतंग दर्रे में भी 18 मई को शुरू हुए रिवरफ्रंट सफाई अभियान जैसा अभियान शुरू करना चाहिए.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा समर्थित स्कूल के छात्रों और एक क्षेत्रीय सेना बटालियन से जुड़े अभियान में तीन जिल- मंडी, कुल्लू और बिलासपुर शामिल हैं, जहां से ब्यास नदी बहती है. यह विश्व पर्यावरण दिवस पर समाप्त होगा, जो 5 जून को मनाया जाता है. भारत इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण नेतृत्व वाले वैश्विक कार्यक्रम, विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी कर रहा है और 2018 का विषय बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन (प्लास्टिक प्रदूषण को हराओ) है.

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