लखनऊ / मेरठ / नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्ष 1987 में हुए हाशिमपुरा नरसंहार कांड में ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 16 दोषी पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में सभी 16 पीएसी जवानों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था, जिसके बाद पीड़ित पक्ष ने इसे दोबारा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. फैसला आने के बाद नरसंहार कांड में एक पीड़ित के पिता जमालुद्दीन ने कहा, हाईकोर्ट का आदेश हमारे पक्ष में है. हम खुश हैं. उन्होंने कहा कि हमने 31 साल तक इंतजार किया है. दोषियों को आखिरकार सजा दे दी गई.बुधवार (31 अक्टूबर) को दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें उसने आरोपियों को बरी कर दिया था. हाईकोर्ट ने प्रादेशिक आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी (पीएसी) के 16 पूर्व जवानों को हत्या, अपहरण, आपराधिक साजिश तथा सबूतों को नष्ट करने का दोषी करार दिया. अदालत ने नरसंहार को पुलिस द्वारा निहत्थे और निरीह लोगों की ‘लक्षित हत्या’ करार दिया.फरवरी 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया तो वेस्ट यूपी में माहौल गरमा गया. इसके बाद 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हुआ. हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं. इन सबको देखते हुए मई के महीने में मेरठ शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा और शहर में सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला. 22 मई 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने हाशिमपुरा मोहल्ले में सर्च अभियान चलाया. आरोप है जवानों ने यहां रहने वाले किशोर, युवक और बुजुर्गों सहित कई 100 लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गई. शाम के वक्त पीएसी के जवानों ने एक ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए थे. उस ट्रक में करीब 50 लोग थे. वहां ट्रक से उतारकर जवानों ने लोगों को गोली मारने के बाद एक-एक करके गंग नहर में फेंका गया दिया. इस घटना के बाद करीब 8 लोग सकुशल बच गए थे. जिन्होंने बाद में थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बना.
हाशिमपुरा नरसंहार कांड : हाईकोर्ट ने बदला ट्रायल कोर्ट का फैसला, दोषी पीएसी जवानों को उम्रकैद पर खुश हैं पीड़ितों के परिजन
Loading...