राहुल यादव, लखनऊ। सदाबहार हिंदी फ़िल्म अभिनेता, लेखक, निर्देशक और निर्माता देव आनन्द ठीक एक वर्ष पहले बीते कल के ही दिन अपने प्रशंसकों को रोता-बिलखता छोड़ कर ऊपर वाले के पास चले गए थे। उनका नाम ‘धरमदेव पिशोरीमल आनन्द’ था, जिन्हें हम सब ‘देव आनन्द’ के नाम से जानते हैं। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
हमेशा फ़िल्मी पर्दे पर रूमानी दिखने वाले देव साहब खुद को हमेशा सदाबहार ही मानते थे। सोचिए जरा कि उम्र के आखिरी पड़ाव तक पहुंचने पर भी जब दूसरे कलाकार चरित्र अभिनेता के रूप में दादा और नाना के किरदार में दिखे वहीं देव आनन्द ने खुद को लीड रोल में ही पेश किया। उनकी आखिरी फ़िल्म ‘चार्जशीट’ में भी वह लीड अभिनेता ही पर्दे पर दिखे। इस फ़िल्म को करते समय उनकी उम्र 88 साल की थी।
उन्होंने जिंदगी के आखिरी पल लंदन में बिताने का फैसला किया, चले भी गए। हर दिल अजीज देव आनन्द का 3 दिसम्बर, 2011 को लंदन में ही निधन हो गया था।कुछ रोचक प्रसंग- देव आनन्द जैसे हीरो की सदाबहारी जितनी मशहूर है उतनी ही चर्चित रही है सुरैया से उनकी बेपनाह मोहब्बत। सुरैया की नानी इन दोनों के प्रेम की दुश्मन थीं, क्योंकि यह इश्क परवान चढ़ते ही सोने का अंडा देने वाली मुर्गी सदृश्य सुरैया शादी करके फुर्र हो जाती।
स्टूडियो के मेकअप रूम में ही 4 फिल्मों- जीत 1949, नीली 1950, विद्या 1948, व सनम 1951 की शूटिंगों के दौरान दोनों का पगता रहा, जबकि सुरैया की नानी बेगम कई बार छापा मारकर हंगामा बरपा चुकी थीं। यही नहीं ‘सनम’ के दौरान तो मारा- पीटा भी और मरीन लाइन्स वाले फ्लैट में कैद तक कर दिया था। फलत: सुरैया ने इस दोस्ती से किनारा ही कर लिया। उस समय देव के सामने एक और विकल्प उनकी दो फिल्मों मधुबाला, निराला (50), नादान, आराम (51), अरमान (53), कालापानी (56), दिलरुबा (60), मदहोश (62), शराबी (64) की नायिका मधुबाला भी थीं लेकिन सुरैया-प्रेम के चलते दूसरी सात फिल्मों बाजी (51), जाल, जलजला (52), फेरी (54), फरार (55) सोलहवां साल (58), साहिर (59) की नायिका गीता बाली तीसरे व आठ फिल्मों- हमसफर (53), हाउस नंबर 44 (54), टैक्सी ड्राइवर (54), नौ दो ग्यारह (57), एक के बाद एक, जाली नोट एवं सरहद (60), फंटूश (65) की हीरोइन कल्पना कार्तिक चौथे नंबर पर थीं, जिनमें मधुबाला-किशोर, गीता-शम्मी कपूर की शादी के बाद से कल्पना की ही जीत हुई और वही देव आनन्द की पत्नी बनीं। देव आनन्द की तीन और हीरोइनों का साथ चर्चित रहा जिनमें से हेमा मालिनी अमीर-गरीब, जॉनी मेरा नाम (70), छुपा रुस्तम (75), शरीफ बदमाश (76), जानेमन (78), जोशीला (80), व जीनत अमान इश्क-इश्क (76), कलाबाज (77), हीरा पन्ना (79), डार्लिंग-डार्लिंग (80), वारंट (81), बुलेट (82) 6-6 फिल्मों में और वहीदा रहमान पांच फिल्मों- सीआईडी (56), रूप की रानी चोरों का राजा (61), बात एक रात की, गाइड (63), प्रेम पुजारी (74) में उनकी नायिका रहीं– (शीघ्र प्रकाश्य मेरी किताब “मायानगरी – कुछ भूल गया, कुछ याद रहा” का एक अंश)
देव आनन्द अपनी हर फिल्म के लिए नयी हीरोइन खोज लाने में उस्ताद रहे हैं या फिर एक-दो फिल्म करने के बाद भी ना चल पा रही हीरोइन को ब्रेक देकर आसमान तक पहुंचाने में सफल रहे हैं। उनकी फिल्म ‘स्वामी दादा’ के लिए हॉलीवुड से हीरोइन क्रिस्टीन-ओ- नील आयी थी। उसका सपना था कि भारत से वह पाश्चात्य संस्कृति के प्रतीक-रूप में अपनी देह यष्टि का भरपूर उपयोग कर मशहूर हो जाएगी। उसने स्वामी दादा में किया भी, लेकिन अभाग्य देखिए फिल्म तो गयी ही क्रिस्टीन भी चार-पांच वर्षों तक हॉलीवुड की कमाई से यहीं पड़ी रही और अंत में देव साहब पर तमाम आरोप गढ़ते हुए वापस ही लौट गयी। दरअसल अमरीका जाने से पहले क्रिस्टीन ने आनन-फानन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में देव साहब को लंगोट का तो पक्का कहा लेकिन भारत बुलाकर धोखा देने की बात बड़े तर्कपूर्ण ढंग से समझाया था। बकौल क्रिस्टीन देव साहब के कहने से उसने अपनी नौकरी छोड़ दी थी और बेकारी की दशा में रही। उसका कहना था कि देव साहब ने उसे सुनहरे सपने दिखाए थे कि फिल्म के प्रदर्शन के साथ ही मुम्बई से हॉलीवुड तक हाथों-हाथ महत्व पाने लगेगी… बहरहाल स्वामी दादा (1982) पिट गयी थी और खुद देव साहब व यूनिट के लोगों ने कई साल बेकारी में ही गुजारे थे। अब क्रिस्टीन अगर स्वदेश चली गयी तो अच्छा ही हुआ होगा- (शीघ्र प्रकाश्य मेरी किताब “मायानगरी – कुछ भूल गया, कुछ याद रहा” का एक अंश)
हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाते चले गये थे देव आनन्द- हेमन्त शुक्ल
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