शिमला: हिमाचल के सेब और अन्य फल उत्पादक क्षेत्रों में बर्फ चूहों और कीटों पर कहर बनकर गिरी है। सेब बगीचों में नासूर बने चूहे बर्फबारी से गिरे तापमान के कारण बड़ी संख्या में मर रहे हैं। इससे जमीन में चूहों के बिल और उनकी खोदी सुरंगें बंद होने लगी हैं। इसके अलावा जनवरी और फरवरी में बर्फबारी के बाद तापमान में कमी आने से सेब पौधों में रूट बोरर, कैंकर, वूली एफिड, स्केल और माइट जैसे रोगों का प्रकोप भी थम गया है। मार्च में तापमान बढ़ जाए तो सेब के बगीचों में कीट हमला कर देते हैं। बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि हिमाचल में बारिश और बर्फबारी से मार्च में भी तापमान काफी कम है।
इससे जहां सेब और अन्य फलदार पौधों पर कीटों और बीमारियों की मार कम पड़ रही है, वहीं बगीचों में चूहे भी नुकसान नहीं पहुंचा पा रहे हैं। चूहे बगीचों में फलदार पेड़ों खासकर सेब के पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। ये मीठी और नरम होती हैं, इसलिए चूहे इन्हें पसंद करते हैं। अगर चूहे सेब पौधों की जड़ों को निशाना बनाते हैं तो इससे पेड़ के गिरने का खतरा बना रहता है। बगीचों के तौलियों में चूहों के बिलों के रास्ते बंद हो गए हैं। चूहों को ज्यादा समस्या खाने की रहती है और कम तापमान में ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकते। ऐसे में बगीचों में इनकी संख्या कम हो रही है।
रूट बोरर भी जड़ों को खा जाता है। बर्फ और ठंड से बोरर भी मर रहा है। दूसरे कीट, फंगस और रोगों से भी बचाव हो रहा है। कोटखाई क्षेत्र के बागवान महेंद्र ठाकुर और थानाधार क्षेत्र के सेब उत्पादक सुनील शर्मा कहते हैं कि बर्फबारी के बाद से सेब के बगीचों में चूहों की संख्या कम हुई है। सेब बगीचों में बर्फ होने से चूहों की संख्या प्राकृतिक रूप से नियंत्रित होती है। चूहों के बिलों के रास्ते बंद हो जाते हैं। बर्फबारी से सेब पौधों में कैंकर, स्केल, वूली एफिड, जड़ सड़न जैसे रोग के फैलने का मौका नहीं मिलता। सेब पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों की संख्या तापमान कम होने से नहीं बढ़ पाती।