नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक और युवती को उसके पति से मिला दिया. उसने केरल हाईकोर्ट का शादी रद्द करने का फैसला पलट दिया. लिव इन रिलेशनशिप पर भी सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी. कोर्ट ने कहा कि शादी की उम्र नहीं तो लिव इन में रह सकते हैं दोनों.कोर्ट ने कहा अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के लिए एक बालिग लड़की का अधिकार उसके पिता द्वारा कम नहीं किया जा सकता. यहां तक कि अगर लड़के की उम्र विवाह योग्य 21 साल नहीं है तो वह उसके साथ ‘लिव इन’ संबंध रख सकती है. पसंद की स्वतंत्रता तुषारा की होगी कि वह किसके साथ रहना चाहती है. यहां तक कि अगर वह विवाह में प्रवेश करने के लिए सक्षम नहीं हैं तो उन्हें शादी के बाहर भी एक साथ रहने का अधिकार है.
कोर्ट ने कहा कि ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ अब विधायिका द्वारा मान्यता प्राप्त है जिसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं के संरक्षण के प्रावधानों के तहत अपना स्थान मिला है. अदालत को मां की किसी भी तरह की भावना या पिता के अहंकार से प्रेरित एक सुपर अभिभावक की भूमिका नहीं निभानी चाहिए.
इस मामले में अप्रैल 2017 में विवाह के समय लड़की तुषारा 19 वर्ष की थी और लड़का नंदकुमार 20 साल का था. लड़की के पिता की याचिका पर कि लड़के ने उसकी बेटी का अपहरण कर लिया, केरल उच्च न्यायालय ने पुलिस को लड़की को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया और उसके बाद विवाह को रद्द कर दिया. लड़की को उसके पिता के पास भेज दिया गया.
तुषारा 19 वर्ष की है और इसलिए शादी करने में सक्षम है क्योंकि महिलाओं के लिए विवाह योग्य उम्र 18 साल है.
हालांकि नंदकुमार की उम्र के बारे में विवाद उठ गया. विवाद यह था कि वह 20 साल का था और यह पुरुष की शादी योग्य उम्र नहीं है.
यह नहीं कहा जा सकता कि केवल इसलिए कि अपीलकर्ता 21 वर्ष से कम आयु का है तो दोनों के बीच विवाह शून्य है. दोनों हिंदू हैं और इस तरह की शादी हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक शून्य विवाह नहीं है और धारा 12 के प्रावधानों के अनुसार इस तरह के मामले में यह पार्टियों के विकल्प पर केवल एक अयोग्य शादी है.