लखनऊ-नागपुर: सिर्फ भाजपा ही नहीं, समूचा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार फिलहाल नए क्षितिज की तलाश में है। इसकी एक कड़ी मात्र पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हैं, जिनका बुधवार को नागपुर में गरिमामय स्वागत किया गया। प्रणब के संबोधन पर राष्ट्रीय के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया की भी नजर है। प्रणब दा बुधवार शाम नागपुर पहुंच गए।
संघ के कई वरिष्ठ अधिकारी उनके स्वागत के लिए नागपुर विमानतल पर मौजूद थे। यह अवसर पहला है, जब कोई पूर्व राष्ट्रपति संघ शिक्षा वर्ग को संबोधित करने पधारा है। इससे पहले राष्ट्रपति रहते हुए नीलम संजीव रेड्डी दिल्ली में संघ के आनुषंगिक संगठन विद्या भारती के कार्यक्रम में शिरकत कर चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम संघ के एक और आनुषंगिक संगठन विज्ञान भारती के कार्यक्रम के लिए नागपुर के रेशिमबाग स्थित संघ मुख्यालय में आ चुके हैं।
प्रणब दा का संघ के मंच पर आना एक मायने में अन्य दो राष्ट्रपतियों से पृथक है। नीलम संजीव रेड्डी एवं अब्दुल कलाम दोनों ही गैरकांग्रेसी शासनकाल में राष्ट्रपति रहे थे। राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी का चुनाव न सिर्फ कांग्रेस शासनकाल में हुआ था, बल्कि वह उस कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं विचारक भी रहे हैं, संघ जिसका प्रखर आलोचक रहा है। संभवत: यही कारण है कि प्रणब दा का संघ शिक्षा वर्ग में आना, कांग्रेस के नेता आसानी से नहीं पचा पा रहे हैं। हालांकि संघ के लिए विपरीत विचारों के व्यक्तियों को अपने मंच पर आमंत्रित करना कोई नई बात नहीं रही है।
संघ अपने प्रत्येक संघ शिक्षा वर्ग में किसी न किसी ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित करता रहा है, जो संघ की संस्कृति से अनजान अथवा उसका आलोचक रहा हो। संघ ऐसे व्यक्तियों को आमंत्रित कर न सिर्फ संघ संस्कृति से उसका परिचय कराना चाहता है, बल्कि स्वयं भी उसके विचारों से लाभान्वित होना चाहता है। खासतौर से ऐसे समय में, जब संघ के ही राजनीतिक अंग भाजपा की केंद्र सहित देश के अधिसंख्य राज्यों में सरकारें हैं तो संघ के लिए अपने विचारों का विस्तार करना अथवा दुनिया में अपने प्रति फैले भ्रम को दूर करना किसी सुअवसर से कम नहीं है।
संघ इन दिनों इसी प्रयास में लगा है। दो दिन पहले ही मुंबई स्थित शासकीय विश्रामगृह सह्याद्रि में रोजा इफ्तार का आयोजन एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का देश भर में रतन टाटा एवं माधुरी दीक्षित जैसी शख्सियतों से मिलना नया क्षितिज तलाशने की मुहिम का ही एक अंग माना जा सकता है। देखना यह है कि अब प्रणब दा गुरुवार को संघ के मंच से बोलते क्या हैं?