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9 अगस्त को सावन की शिवरात्र‍ि : आइये जाने क्या है शिवरात्रि,इसका महत्व क्या है,शिवजी की पूजा कैसे करनी चाहिए

 लखनऊ : सावन की शिवरात्र‍ि (Sawan Shivratri) हर साल सावन महीने में मनाई जाती है. हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार सावन साल का पांचवां महीना होता है जबकि ग्रेगोरियन कैंलडर के मुताबिक यह जुलाई और अगस्‍त महीने में आता है. हिन्‍दू धर्म में सावन के महीने और सावन की शिवरात्र‍ि का विशेष महत्‍व है. शिव भक्‍त साल भर इस शिवरात्रि का इंतजार करते हैं. अपने आराध्‍य भगवान शिव शंकर को प्रसन्‍न करने के लिए भक्‍त कांवड़ यात्रा पर जाते हैं. इस यात्रा के दौरान शिव भक्‍त गंगा नदी का पवित्र जल अपने कंधों पर लाकर सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. इस बार 9 अगस्‍त को सावन की शिवरात्रि मनाई जाएगी.

आइये जानते है सावन के महीने में नहीं खानी चाहिए ये 3 चीजें और सावन शिवरात्रि का महत्‍व
साल में 12 या 13 शिवरात्रियां होती हैं. हर महीने एक शिवरात्र‍ि पड़ती है, जो कि पूर्णिमा से एक दिन पहले त्रयोदशी को होती है. लेकिन इन सभी शिवरात्रियों में दो सबसे महत्‍वपूर्ण हैं- पहली है फाल्‍गुन या फागुन महीने में पड़ने वाली महाशिवरात्र‍ि और दूसरी है सावन शिवरात्र‍ि. हिन्‍दू धर्म को मानने वाले लोगों की शिवरात्र‍ि में गहरी आस्‍था है. यह त्‍योहार भोले नाथ शिव शंकर को समर्पित है. मान्‍यता है कि सावन की शिवरात्रि में रात के समय भगवान शिव की पूजा करने से भक्‍तों के सभी दुख दूर होते हैं और उन्‍हें मोक्ष की प्राप्‍ति होती है. धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार जो भी शिवरात्रि पर सच्‍चे मन से भोले भंडारी की आराधना करता है उसे अपने जीवन में सफलता, धन-संपदा और खुशहाली मिलती है. यही नहीं बुरी बलाएं भी उससे कोसों दूर रहती हैं.क्‍यों मनाई जाती है सावन शिवरात्र‍ि?
महादेव शंकर को सभी देवताओं में सबसे सरल माना जाता है और उन्‍हें मनाने में ज्‍यादा जतन नहीं करने पड़ते. भगवान सिर्फ सच्‍ची भक्ति से ही प्रसन्‍न हो जाते हैं. यही वजह है कि भक्‍त उन्‍हें प्‍यार से भोले नाथ बुलाते हैं. सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्‍व है जिसका सीधा संबंध सावन की शिवरात्रि से है. सावन की शिवरात्र‍ि मनाने के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं. हालांकि सबसे प्रचलित मान्‍यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव घटाघट पी गए. इसके परिणामस्‍वरूम वह नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हो गए. त्रेता युग में रावण ने शिव का ध्यान किया और वह कांवड़ का इस्‍तेमाल कर गंगा के पवित्र जल को लेकर आया. गंगाजल को उसने भगवान शिव पर अर्पित किया. इस तरह उनकी नकारात्‍मक ऊर्जा दूर हो गई.कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में शुरू होकर सावन की शिवरात्रि के साथ खत्‍म होती है. कांवड़ एक खोखले बांस को कहा जाता है और इस यात्रा पर जाने वाले शिव भक्‍त कांवड़‍िए कहलाते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्‍त हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, बैद्यनाथ, नीलकंठ, देवघर समेत अन्‍य स्‍थानों से गंगाजल भरकर अपने स्‍थानीय शिव मंदिरों के शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. गंगाजल को कांवड़ यानी कि बांस के डंडे पर लाया जाता है. खास बात यह है कि इस जल या कांवड़ को पूरी यात्रा के दौरान जमीन से स्‍पर्श नहीं कराया जाता है.

सावन शिवरात्र‍ि का शुभ मुहूर्त
मान्‍यता है कि अगर सावन शिवरात्रि सोमवार को पड़े तो बहुत शुभ और मंगलकारी होता है. वैसे शिवरात्रि का शुभ समय मध्य रात्रि माना गया है. इसलिए भक्‍तों को शिव की पूजा मध्य रात्रि में करनी चाहिए. इस शुभ मुहर्त को ही निशिता काल कहा जाता है.

 कैसे करते है सावन में शिवरात्रि की पूजा विधि
– सावन शिवरात्रि के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिव की पूजा करें.
– मंदिर पहुंचकर भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को पंचामृत जल अर्पित करें. दूध, दही, चीनी, चावल और गंगा जल के मिश्रण से पंचामृत बनता है.
– पंचामृत जल अर्पित करने के बाद शिवलिंग पर एक-एक करके कच्‍चे चावल, सफेद तिल, साबुत मूंग, जौ, सत्तू, तीन दलों वाला बेलपत्र, फल-फूल, चंदन, शहद, घी, इत्र, केसर, धतूरा, कलावा, रुद्राक्ष और भस्‍म चढ़ाएं.
– इसके बाद शिवलिंग को धूप-बत्ती दिखाएं.
– सावन की शिवरात्रि के दिन भक्‍तों को व्रत रखना चाहिए. इस दिन केवल फलाहार किया जाता है. साथ ही खट्टी चीजों को नहीं खाना चाहिए. इस दिन काले रंग के कपड़ों को पहनना वर्जित माना गया है.

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